राजस्थान की झीले
खारे पानी की झीलें
सांभर झील
( जयपुर -नागौर ) -जयपुर व नागौर जिलों में स्थित । भारत में खारे पानी की सबसे बडो झील । समुद्रतल से औसत ऊँचाई 367 मीटर । मन्था / मेढा , रूपनगढ , खारी , खण्डेला नदियां इस झील में गिरती है । भारत सरकार की हिन्दुस्तान नमक कम्पनी द्वारा 1964 में सांभर साल्ट परियोजना प्रारम्भ की गई । यहां पर सोडियम सल्फेट का कारखाना भी है ।
डीडवाना झील-
नागौर- राजस्थान सरकार द्वारा यहां सोडियम सल्फेट बनाने का सबसे बड़ा प्लांट लगाया गया है.
पचपदरा झील –
बाडमेर– बालोतरा से 25 किमी उतर पश्चिम में स्थित । यहां के नमक में सोडियम क्लोराइड की मात्रा 98 प्रतिशत है । यहां पर नमक का उत्पादन का कार्य परम्परागत रूप से खारवाल जाति के लोगों के द्वारा मोरली नामक झाडी की टहनी से किया जाता है ।
लूणकरनसर झील –
बीकानेर– उतरी राजस्थान की एकमात्र खारे पानी की झील है । राजस्थान में खारे पानी की अन्य प्रमुख झीलें कावोद एवं पोकरण – जैसलमेर डेगाना एवं कुचामन- नागौर कोछोर एवं रैवासा -सीकर फलौदी- जोधपुर सांभर , डीडवाना , पचपदरा में छोटी – छोटी नमक उत्पादन निजी संस्थाएं है । जिन्हें स्थानीय भाषा में देवल कहते है ।
मीठे पानी की झीले ।
जयसमन्द झील –
उदयपुर– उदयपुर से 51 किमी द . पू में स्थित । महाराणा जयसिंह द्वारा 1685 में गोमती नदी पर बांध बनाकर करवाया गया । विश्व की मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी कृत्रिम झील है । स्थानीय भाषा में इसे ढेबर झील भी कहते है । इस झील में सात टापू है । जहां भील एवं मीणा जनजाति के लोग निवास करते है ।सबसे बडे टापू का नाम बाबा का भागडा तथा दूसरे बडे का नाम प्यारी है । बाबा का भागडा नामक टापू पर आइलैण्ड रिसोर्ट नामक होटल स्थित हैं 1950 में जयसमन्द झील से श्यामपुरा एवं भाट नहरे निकाली गयी ।जयसमन्द के निकट एक पहाड़ी पर चित्रित हवामहल एवं रूठी रानी का महल स्थित है ।
राजसमन्द झील-
राजसमन्द– राज्य की एकमात्र ऐसी झील है जिस पर किसी जिले का नामकरण हुआ है । राजसमन्द झील का निर्माण उदयपुर के महाराणा राजसिंह द्वारा 1661-1675 के मध्य में गोमती नदी पर बांध बनवाकर किया गया ।झील का उतरी भाग नौ चौकी कहलाता है । राजप्रशस्ति महाकाव्य की रचना महाराणा राजसिंह के दरबारी कवि रणछोड भट्ट ने की थी । राजसमन्द झील के किनारे घेवर / गेवर माता का मंदिर स्थित है ।
पिछोला झील –
उदयपुर– चौदहवी शताब्दी में राणा लाखा – मेवाड के शासनकाल में एक बंजारे द्वारा पिछोली गांव के निकट इसका निर्माण करवाया गया था । महाराणा उदयसिंह ने इसकी मरम्मत करवाई । वर्तमान में यह मनोरम झील उदयपुर नगर के पश्चिम में लगभग 7 किमी की लंबाई में फेली है । सीसारमा व बुझडा नदियां इस झील को जलापूर्ति करती हैं झील में स्थित दो टापुओं पर जगनिवास एवं जगमंदिर महल बने हुए है । यहां लेक पैलेस होटल है । महाराणा कर्णसिंह के समय जगमंदिर महल में शहजादा खुर्रम / शाहजहां ने अपने पिता जहांगीर से विद्रोह के समय शरण ली थी । जगमंदिर महल में ही 1857 ई में राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान महाराणा स्वरूप सिंह ने नीमच की छावनी से भागकर आए 40 अंग्रेजों को शरण देकर कांतिकारियों से बचाया था । जगनिवास महल / लैक पैलेस विश्व के सुंदरतम महलों में से एक माना जाता हैं इस महल का निर्माण महाराणा जगतसिंह ने 1746 में करवाया था । पिछोला झील के किनारे चामुण्डा माता का मंदिर स्थित है । जहां देवी के पद चिन्हो / पगल्या की पूजा की जाती है । पिछोला के किनारे उदयपुर का राजमहल ( सिटी पैलेस ) बना हुआ है ।
फतेह सागर झील
उदयपुर उदयपुर नगर के उतर में स्थित । निर्माण महाराणा जयसिंह ने 1687 में करवाया था । बाद में फतेह सिंह ने 1900 ई में जीर्णोद्वार करवाया । इस नींव का पत्थर ड्यूक आफ कनॉट द्वारा रखे जाने के कारण इसे कनॉट बांध भी कहते है । इस झील के किनारे मोती मगरी में महाराणा प्रताप की अश्वारूढ धातु प्रतिमा / प्रताप स्मारक लगी हुई है । निकट ही सहेलियों की बाडी नामक सुदर बगीचा स्थित है । जिसका निर्माण महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय द्वारा तथा पुनर्निर्माण महाराणा फतेहसिंह ने करवाया । फतेहसागर झील में एक टापू पर नेहरू पार्क तथा दूसरे पर सौर वैधशाला स्थित है ।
पष्कर झील –
अजमेर– अजमेर से 11 किमी उत्तर पश्चिम में अजमेर नागौर मार्ग ( राष्ट्रीय राजमार्ग 89 ) पर भारत में सबसे पवित्र मानी जाने वाली पुष्कर झील है । झील के किनारे कुल 52 घाट बने हुए है । जिसमे सबसे बड़ा महात्मा गांधी घाट / गौघाट है । ब्रम्हाघाट एवं वराहघाट भी महत्वपूर्ण है । इन घाटों का निर्माण 944 ई में मण्डोर के शासक नाहरराव परिहार ने करवाया था । गौघाट का पुनर्निर्माण मराठा सरदारों ने 1809 में करवाया । गौघाट पर सिक्खों के दसवें गुरू गोविन्दसिंह ने 1705 ई में गुरू ग्रन्थ साहिब का पाठ किया था । 1911 में इंग्लैण्ड की महारानी मेरी की यात्रा की याद में पुष्कर के किनारे क्वीन मेरी जनाना घाट बनवाया था । पद्म पुराण के अनुसार पुष्कर सरोवर का निर्माण प्रजापिता ब्रम्हा द्वारा करवाया गया । झील के किनारे ब्रम्हाजी का भारत में एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर स्थित है । इस मंदिर में मूर्ति की स्थापना आदि शंकराचार्य ने करवाई थी । वर्तमान मंदिर का निर्माण गोकूलचंद पारीक ने 1809 विक्रमी में करवाया । झील के किनारे सावित्री मंदिर ( रत्नागिरी पर्वत की चोटी पर ) . रंगनाथ जी ( रमा वैकुण्ठ ) का मंदिर , वराह मंदिर , आत्मेश्वर महादेव मंदिर एवं गायत्री मंदिर स्थित है । झील के निकट ही बूढा ( वृहद ) पुष्कर एवं कनिष्ठ पुष्कर नामक तीर्थ स्थल स्थित है ।
पुष्कर झील के किनारे आमेर के राजा मानसिह प्रथम द्वारा निर्मित मान महल स्थित है । जहां वर्तमान में आर . टी . डी . सी . द्वारा होटल सरोवर संचालित किया जा रहा है । पुष्कर में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिवसीय विशाल मेला भरता है । कनाडा के सहयोग से इस झील को गहरा व स्वच्छ करने की योजना चल रही है ।
नक्की झील-
सिरोही– राजस्थान में सर्वाधिक ऊंचाई 1300 मीटर पर स्थित नक्की झील सिरोही जिले में आबू पर्वत पर स्थित है । यह एक ज्वालामुखी केटर झील है । एक किवदनी के अनुसार देवताओं ने अपने नाखूनों से इस झील को खोदा था । इसी कारण इसका नाम नक्की झील पडा । झील के किनारे रघुनाथ जी का मंदिर , टॉड रॉक . नन रॉक . पैरेंट रॉक , राम झरोखा गुफा , हाथी गुफा , चम्पा गफा स्थित है ।
आनासागर शील
अजमेर– नागपहाड़ की तलहटी में पृथ्वीराज चौहान के पितामह आनाजी ने इस झील का निमाण 1137 में करवाया है । इसके निकट एक पहाड़ी पर बजरंग गढ़ / नुमान मंदिर स्थित है । इसके किनारे बारादरी का निर्माण शाहजहा ने 1637 ई में करवाया था तथा दौलतबाग जो कि अब सुभाष उधान के नाम से जाना जाता है । का निर्माण मुगल बादशाह जहागीर ने करवाया ।
फॉय सागर
अजमेर वर्ष 1891 – 92 में अकाल राहत कार्यों के दौरान एक अग्रेज अभियन्ता श्री फॉय ने बाडी नदी पर बाध बनाकर फॉयसागर झील का निर्माण करवाया ।
सिलीसेट झील-
अलवर– इस झील किनारे 1845 ई में अलवर के महाराजा विनयसिंह ने अपनी रानी शीला के लिए एक शाही शिकारगाह / लॉज एव छह मंजिला सुदर महल बनवाया । इस महल में अब होटल लैक पैलेस संचालित किया जा रहा है ।
कोलायत झील-
बीकानेर – बीकानेर से 50 किमी दूर बीकानेर जैसलमेर मार्ग पर स्थित कपिल मुनि की तपोस्थली भूगि । यहा प्रतिवर्ष कातिक पूर्णिमा के अवसर पर मेले का आयोजन होता है । इस मेले में दीपदान का विशेष महत्व है ।
नवल सागर / नवलखा झील –
बूदी – बूंदी के दुर्ग तारागढ की पहाडी के तलहटी में राजा उग्गेदसिंह द्वारा इस झील का निर्माण करवाया गया । झील के मध्य में जल देवता वरूण का मंदिर आधा डूबा हुआ है । इस झील के किनारे शासक विष्णुसिंह ने अपनी रानी सुदरशोभा के लिए सुन्दर महल एवं सुन्दर घाट का निर्माण करवाया ।
गैव सागर / गैब सागर / गैप सागर-
डूंगरपूर– इस झील का निर्माण महारावल गोपीनाथ ने करवाया था । इसके किनारे उदय विलास महल एवं राज राजेश्वर मंदिर स्थित है । फतेहगढी , विवेकानन्द स्मारक , राजा बलि , वागड की गवरी बाई . नाना भाई एवं काली बाई की प्रतिमाए स्थापित की गई है ।
बालसमन्द झील-
जोधपुर– 1159 ई में मण्डोर के शासक बालकराव प्रतिहार द्वारा निर्मित इस झील के किनारे होटल लैक पैलेस स्थित है ।
कायलाना झील-
जोधपुर– इस झील का निर्माण जोधपुर राजपरिवार के सर प्रताप ने करवाया था । वर्तमान में झील के किनारे माचिया सफारी पार्क ( मृगवन ) स्थित है ।
उदयसागर झील-
उदयपुर– महाराणा उदयसिंह द्वारा 1559 से 1564 ई तक की अवधि में इसका निर्माण किया गया । आवड नदी इसमें आकर गिरती हैं एवं बेडच के नाम से निकलती है ।
पन्नालाल शाह का तालाब खेतडी ,
झूझनू – 1870 में सेठ पन्नालाल शाह ने बनावाया । खेतडी के राजा अजीतसिंह के आमंत्रण पर पधारे स्वामी विवेकानन्द को इसी तालाब के किनारे बने आवास में ठहराया गया था ।
गडसीसर तालाब-
जैसलमेर– इसका निर्माणउ 1340 में रावल गडसीसिंह ने जैसलमेर शहर के निकट करवाया था । यह तालाब 1965 तक पेयजल स्त्रोत था । इस सरोवर को मेहराबनुमा मुख्य द्वार टीलों नामक एक वेश्या ने बनावाया था । ( टीलों की पोल ) इसके किनारे जैसलमेर लोक संस्कृति संग्रहालय स्थित है । राजस्थान में जल संरक्षण राजस्थान देश में सर्वाधिक कमी वाला राज्य है । यहां देश के कुल संसाधनों का मात्र एक प्रतिशत भाग ही मिलता है । राजस्थान का 60.2 प्रतिशत क्षेत्र अन्तः प्रवाह के अन्तर्गत आता है । अर्थात इस क्षेत्र में कोई ऐसी नदी नही है । जिसका जल समुंद्र में जाता हो ।
जल संग्रहण की परम्परागत विधियां निम्नांकित है ।
1. नाडी-
जिसमें वर्षा का जल संग्रहित किया जाता है
2. बावडी-
एक प्रकार का सीढीनुमा वृहद् कुआं है ।वर्षा का जल संग्रहण । शेखावाटी एंव बूदी की की बावडियां इसके लिए प्रसिद्ध है ।
3. टोबा-
नाडी के समान किन्तु गहरा ।
4. खडीन-
जल संग्रहण की प्राचीन विधि । खडीन मिट्टी का बांधनुमा अस्थायी तालाब होता है जैसलमेर क्षेत्र में खडीन प्रसिद्ध है ।
5. टांका-
वर्षा का जल संग्रहण किया जाता है । पश्चिमी राजस्थान में प्रसिद्ध राजस्थान में वर्तमान में रेन वाटर हार्वेस्टिग प्रणाली इसी का परिष्कृत रूप है ।