पदार्थ एवं उसका वर्गीकरण
पदार्थ (Substance)– कोई भी वस्तु जो स्थान घेरती हो और जिसमें द्रव्यमान होता है।
पदार्थ को निम्न तीन प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है
- भौतिक अवस्था के आधार पर – ठोस (Solid), द्रव (Liquid) और गैस (Gas)
गुण | ठोस | द्रव | गैस | |
अंतरा आण्विक आकर्षण बल | प्रबल | मध्यम | दुर्बल | |
आकार | निश्चित | अनिश्चित | अनिश्चित | |
आयतन | निश्चित | निश्चित | अनिश्चित | |
घनत्व | अधिकतम | मध्यम | न्यूनतम | d = m(द्रव्यमान)/v(आयतन) |
संपीड्यता | न्यूनतम | मध्यम | अधिकतम | दाब आरोपित कर आयतन कम करना। |
- रासायनिक संघटन के आधार पर – तत्व (Element), यौगिक (Compound), मिश्रण
- प्रकृति के आधार पर – अम्ल, क्षारक और लवण।
बर्फ जल की सतह पर तैरती है, क्योंकि बर्फ में जल के अणुओं के मध्य हाइड्रोजन बंध पाये जाने के कारण पिंजरेनुमा संरचना बनती है और रिक्त स्थान रह जाता है जिससे बर्फ का घनत्व जल की तुलना में कम होता है।
वाष्पन – क्वथनांक से नीचे किसी द्रव का वाष्प में बदलना कहते हैं। वाष्पन कहलाता है।
वाष्प को केवल दाब लगाकर द्रवित कर सकते हैं। लेकिन गैस को केवल दाब लगाकर द्रवित नहीं किया जा सकता।
अवस्था परिवर्तन
गलनांक (Malting Point)- जिस ताप पर गलन क्रिया शरू होती है। व पदार्थ ठोस से द्रव अवस्था में आता है। जैसे – बर्फ का गलनांक =0°c
क्वर्थनाक (Boiling Point)-जिस ताप पर क्वर्थन क्रिया होती है। पदार्थ द्रव – गैस अवस्था में आता है। पानी का क्वथनाक =100°C
हिमांक )E.P.)-जिस ताप पर पिण्डन क्रिया होती है। पदार्थ द्रव – ठोस अवस्था में आता है।
किसी पदार्थ का गलनांक व हिमांक एक ही ताप पर होता है।
अवस्था परिवर्तन के दौरान ताप स्थिर रहता है।
गुप्त उष्मा अवस्था परितर्वन में काम आने वाली उष्मा है।
रासायनिक संगठन के आधार पर पदार्थ के प्रकार
तत्व (Elements) – एक समान प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना पदार्थ तत्व कहलाता है। तत्व सबसे शुद्ध पदार्थ होता है। उदाहरण: H2, O2, 03, S8, Na, Mg etc.
यौगिक – अलग-अलग प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना पदार्थ यौगिक कहलाता है। उदाहरण H2O, CO2, NaCl, H2SO4, etc.
मिश्रण – जब दो या अधिक पदार्थों को मिलाया जाता है तत्व+ तत्व, तत्व + यौगिक, यौगिक + यौगिक
प्रकृति में सबसे ज्यादा पदार्थ मिश्रण के रूप में पाये जाते हैं।
मिश्रण के निम्न प्रकार होते हैं
संगामी मिश्रण (Homogens) – जब मिश्रण के घटक समान रूप से वितरित होते है। जैसे- वायु, पानी + एल्कोहोल, जल + शर्करा, जल + नमक।
विषमांगी मिश्रण (Heterogenal) – जब मिश्रण के घटक असमान रूप से वितरित होते हैं। जैसे समुद्री जल, जल + रेत, जल + तेल, धुंआ, दूध।
परमाणु संरचना
परमाणु व अणु
परमाणु )Atom)- परमाणु पदार्थ को बनाने वाली मूल इकाई है। परमाणु किसी तत्व का वह सूक्ष्मतम कण है, जो उसकी रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेता है।
अणु (molecules)- वह सूक्ष्मतम कण जिसका प्रकृति में स्वतन्त्र अस्तित्व संभव होता है, अणु कहलाता है। दो या दो से अधिक परमाणुओं के निश्चित अनुपात में संयोजन से अणु बनते है।
यदि किसी अणु में एक ही प्रकार के परमाणु होते है तो उसे समपरमाण्वीय (Homoatomic) अणु कहते है। उदाहरण:- N2, O2, Cl2, आदि
यदि किसी अणु में दो या दो से अधिक प्रकार के परमाणु शामिल हो तो उसे विषम परमाण्वीय अणु कहते है। जैसे- H2O (जल(, Co2, (कार्बन डाइऑक्साइ(,H2O2 (हाइड्रोजन पराक्सॉइड(
परमाणु व अणु में अंतर
परमाणु | अणु |
परमाणु किसी तत्व का सूक्ष्मतम कण है जो उसकी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेता है। स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकते है। | अणु किसी तत्व या यौगिक का वह सूक्ष्मतम कण है जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है। |
ये इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन से मिलकर बनता है। | ये परमाणुओं से मिलकर बने होते है। |
रासायनिक अभिक्रियाओं में परमाणु लगभग अविभाज्य रूप में भाग लेते है तथा इनका स्वरूप नष्ट नहीं होता है | प्रायः परमाणुओं में विभाजित हो जाते है रासायनिक संयोग द्वारा | अन्य प्रकार के अणु बनाते है। |
डॉल्टन का परमाणु सिद्धांत –
डॉल्टन के परमाणु सिद्धांत के अनुसार –
तत्व अनेक सूक्ष्मतम कणों से मिलकर बना होता है, जिसे परमाणु कहते है।
परमाणु अविभाज्य है।
एक ही तत्व के परमाणु आकार, द्रव्यमान तथा अन्य सभी गुणों में एक दूसरे से समान होते है परन्तु भिन्न तत्वों के परमाणु परस्पर भिन्न होते है।
Note:- समस्थानिक व रेडियोएक्टिवता की खोज के बाद , डाल्टन सिद्धांत अमान्य हो गया।
थॉमसन का परमाणु मॉडल –
थॉमसन के अनुसार धनावेश पूरे परमाणु गोले में फैला रहता है जिसकी त्रिज्या 10- सेमी. होती है। इसमें इलेक्ट्रॉन बीच-बीच में उपस्थित रहकर उसे विद्युत उदासीन बनाते है।
थॉमसन का परमाणु मॉडल प्लम–पुडिंग मॉडल कहलाता है।
रदरफोर्ड ने अपने एल्फा कण प्रकीर्णन के प्रयोग से इसे अमान्य कर दिया।
रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल –
अरनेस्ट रदरफोर्ड ने परमाणु के नाभिक की खोज की इनके स्वर्ण पत्र प्रयोग 4 x 10-5 सेमी पतली सोने की झिल्ली पर एल्फा कणों की बमबारी के प्रयोग किये गये।
इस प्रयोग के लिए कहा जाता है, कि लोहे का भारी गोला कागज की पतली पन्नी से टकराकर वापस लौट गया।
निष्कर्ष:
परमाणु का अधिकांश भाग खोखला होता है।
परमाणु के मध्य में अत्यंत सूक्ष्म धनावेशित ठोस भाग जिसे उसने नाभिक कहा
नाभिक में उपस्थित धनावेशित कणों की संख्या के समान ही इलेक्ट्रॉनों की संख्या होती है अत: परमाणु उदासीन होता है।
इलेक्ट्रॉन परमाणु के नाभिक के चारों और वृत्ताकार कक्षाओं में चक्कर लगाते है।
Note- रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल इस समस्या का समाधान नहीं कर पाया की इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा हास के कारण इलेक्ट्रॉन नाभिक में समा जायेगा। यदि इलेक्ट्रॉन निरन्तर ऊर्जा का उत्सर्जन करेगा तो प्राप्त स्पेक्ट्रम सतत होना चाहिये लेकिन रदरफोर्ड का स्वर्ण पत्र प्रयोग ऐसा नहीं होता परमाणु रेखीय स्पेक्ट्रम देते हैं।
इन कमियों को दूर करते हुए नील्स बोर ने परमाणु का मॉडल प्रस्तुत किया।
नील्स बोर की परिकल्पनायें:
इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों और निश्चित ऊर्जा के वृत्ताकार स्थायी कक्षों में चक्कर लगाते हैं जिन्हें ऊर्जा स्तर या कोश कहा जाता है।
इलेक्ट्रॉन केवल उन्ही वृत्ताकार कक्षों में चक्कर लगाते जिनका कोणीय संवेग h/2π का पूर्ण गुणांक होता है।
जब कोई इलेक्ट्रॉन एक ही कक्ष में चक्कर लगाता है तो इलेक्ट्रॉन द्वारा ऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन नहीं होता है। इलेक्ट्रॉन जब निम्न कक्ष से उच्च कक्ष में प्रवेश करता है तो ऊर्जा का अवशोषण करता है जबकि उच्च कक्ष से निम्न कक्ष में प्रवेश करते समय ऊर्जा का उत्सर्जन करता है।
- ऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन क्वांटा या बंडल के रूप के समान में होता है।
परमाणु के मौलिक कण:
खोजकर्ता | आवेश | द्रव्यमान | ||
इलेक्ट्रॉन | थॉमसन | 1.6 x 10-19C | 9.1 x 10-28 | (कैथोड़ किरणे नाम दिया) |
प्रोटॉन | गोल्डस्टीन | 1.602x 10-19C | 1.6726 x 10-24 ग्राम | प्रोटॉन नाम दिया- रदरफोर्ड |
न्यूट्रॉन | जेम्स चैडविक | शून्य | 1.675 x 10-24 ग्राम | |
पॉजिट्रॉन | सी.डी.एण्डरसन | + | = इलेक्ट्रॉन | (1932) |
युकावा | +, -, शून्य | > e– व < p+ | (1935) | |
न्यटीनो | पॉलिंग | शून्य | < इलेक्ट्रॉन | (1927) |
एन्टीप्रोटॉन | सिगरे | ऋण | = to प्रोटॉन | |
एन्टान्यूटान | कार्क | शून्य | = to न्यूट्रॉन | चक्रण- न्यूट्रॉन से विपरीत |
Note:-
प्रोटॉन का द्रव्यमान हाइड्रोजन के एक परमाणु के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है।
इलेक्ट्रॉन नाम दिया-स्टोनी
परमाणु संरचना –
परमाणु के दो भाग होते है।
1. नाभिक 2. बाहरी भाग
1. नाभिक:-
नाभिक परमाणु का अत्यंत सूक्ष्म भाग है।
नाभिक न्यूट्रॉन व प्रोटॉन से मिलकर बना होता है।
परमाणु का कुल भार नाभिक में रहता है।
नाभिक में धन आवेशित प्रोटॉन के पाये जाने के कारण इसमें धन आवेश का उच्च घनत्व पाया जाता है।
नाभिक में पाये जाने वाले प्रोटॉनों एवं न्यटॉनों को सम्मिलित रूप से ‘न्यूक्लिओन्स‘ कहते है। न्यूक्लिओन्स की संख्या तत्व की द्रव्यमान संख्या (A) कहलाती है।
परमाणु के नाभिक का आकार 10-15 मी. होता है।
द्रव्यमान संख्या (A) = प्रोटॉन की संख्या (P) + न्यूट्रॉन की संख्या (N)
परमाणु के नाभिक की त्रिज्या उसमें उपस्थित न्यूक्लिओन्स की संख्या के घनमूल के समानुपाती होती है।
R = R0A1/3
जहाँ:- R = नाभिक की त्रिज्या, R0 = स्थिरांक (1.40 x 10-13 सेमी) , A = न्यूक्लिऑनों की संख्या
परमाणु क्रमांक (Atomic Number):-
किसी तत्व के परमाणु के अन्य कण परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या उस तत्व का परमाणु क्रमांक कहलाता है। उदासीन परमाणु में परमाणु क्रमांक = इलेक्ट्रॉन की संख्या = प्रोटोन की संख्या होती है।
न्यूट्रॉनों की संख्या (N) = द्रव्यमान संख्या(A) – परमाणु क्रमांक(Z)
तत्व का निरूपण
zXA या zAX
उदाहरण- 9F19, 11N23
2. बाहरी भाग:-
परमाणु के बाहरी भाग में निश्चित कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते है। इन कक्षों को ऊर्जा स्तर कहा जाता है।
n = कक्षों की संख्या =1, 2, 3, ………….. ?
कक्ष | n | 2n2 | इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या | |
प्रथम कक्ष | K | 1 | 2(1)2 | 2 |
द्वितीय कक्ष | L | 2 | 2(2)2 | 8 |
तृतीय कक्ष | M | 3 | 2(3)2 | 18 |
चतुर्थ कक्ष | N | 4 | 2(4)2 | 32 |
कक्षक- (Orbital)
परमाणु कोशों को उपकोशों में तथा उपकोशों को कक्षकों में विभाजित किया जाता है।
परमाणु के नाभिक के चारों ओर वह त्रिविमिय क्षेत्र जहाँ गतिमान इलेक्ट्रॉनों के पाये जाने की संभावना अधिकतम होती है. कक्षक कहलाता है। एक कक्षक में अधिकतम दो इलेक्ट्रॉन रह सकते है। उपकोश चार प्रकार के होते है।
S उपकोश- उपकोश गोलाकार होता है। इसमें एक कक्षक होता है। तथा अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या दो होती है।
P- उपकोश- P उपकोश में तीन कक्षक होते है तथा आकृति डम्बलाकार होती है। ये तीनों कक्षक त्रिविम स्थान में परस्पर समकोणीय अक्ष (X, Y व Z) पर अभिविन्यासित होते है, इन्हें Px, Py व Pz कक्षक कहते है। P उपकोश में अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या 6 होती है।
d- उपकोश- d उपकोश में 5 कक्षक होते है। इनकी आकृति दोहरी डम्बलाकार होती है जिन्हें क्रमश: dxy, dxz, dyz, dx2-y2 व dz2 द्वारा दर्शाते है। d उपकोश में अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या 10 होती है।
f- उपकोश- इनकी आकृति जटिल होती है तथा इसमे सात कक्षक होते है। इनमें अधिमतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या 14 होती है।
परमाणु के कक्ष जिन्हें कोश (Shell) भी कहते है, जो उपकोशों (Sub shell) में विभाजित होते है तथा ये उपकोश पुनः कक्षकों (Orbitals) में विभाजित रहते है।
विभिन्न कोशों में उपकोश तथा कक्षकों की संख्या निम्न प्रकार होती है।
कक्ष या कोश | 1 | 2 | 3 | 4 |
उपकोश | s | s, p | s, p, d | S, p, d, f |
कक्षक | 1 | 1+3=4 | 1+3+5=9 | 1+3+5+7=16 |
कक्ष व कक्षक में अंतर
कक्ष (Orbit) | कक्षक (Orbital) |
कक्ष की अवधारणा बोर द्वारा दी गई | कक्षक की अवधारणा तंरंग यांत्रिकी सिद्धांत का परिणाम है। |
द्विविमीय पथ | त्रिविमीय स्थान |
एक कक्ष में अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2n2 होती है । | एक कक्षक में अधिक इलेक्ट्रॉनों की संख्या दो होती है। |
तत्वों का वर्गीकरण
गुण | धातु (Metal) | अधातु (Non-metal) | उपधातु (Metalloid) |
अभिलाक्षणिक गुण | e त्यागकर धनायन बनाते है | ग्रहण करके ऋणायन बनाते है | सामान्य ताप पर अधातु व उच्च ताप पर धातु |
अवस्था | ठोस अपवाद-पारा (द्रव) | गैस, ठोस अपवाद-ब्रोमीन(द्रव) | ठोस |
गलनांक-क्वथनांक | उच्च (High) | निम्न Low) | मध्यम |
चालकता | सुचालक | कुचालक | अर्द्ध चालक |
आघातवर्धनीयता | पायी जाती है | नहीं पायी जाती है | नहीं पायी जाती है |
अभी तक कुल ज्ञात तत्व = 118
कौनसी अधातु को पानी में डुबोकर रखा जाता है-फॉस्फोरस(P) (दहनशील होने के कारण)
तत्वों का वर्गीकरण/आवर्त सारणी का जनक = मेन्डेलीफ
मेण्डेलीफ ने तत्त्वों का वर्गीकरण परमाणु भार के आधार पर किया।
पृथ्वी तल पर सर्वाधिक पायी जाने वाली अधात-ऑक्सीजन
आधुनिक आवर्त सारणी का जनक = हेनरी मोजले
वायुमण्डल में सर्वाधिक पायी जाने वाली गैस – नाइट्रोजन
मौजले में तत्त्वों का वर्गीकरण परमाणु क्रमांक के आधार पर किया।
सबसे हल्की गैस – हाइड्रोजन
सर्वाधिक आघातवर्धनीय धातु – सोना (Au)
प्राकृतिक रूप से ज्ञात तत्व = 92
धातुओं में चालकता क्रम = Ag> Cu> AI> Fe
अन्तिम स्थायी तत्व = लेड़ (Pb)
सबसे कम चालक धातु = सीसा (लेड) Pb
तत्वों का प्रतीक = बर्जीलियस द्वारा
सबसे उच्च उष्मा चालक धातु = मर्करी (पारा) Hg
द्रव अवस्था में पायी जाने वाली धातु – पारा, मर्करी
पृथ्वी तल पर उपस्थित तत्वों का क्रम O> Si> Al> Fe
किस धातु का गलनांक सर्वाधिक होता है- टंगस्टन (w) 3640°C
पृथ्वी तल पर सर्वाधिक पाई जाने वाली धातु = ऐल्यूमिनियम (AI)
किस धातु का गलनांक सबसे कम होता है-मर्करी (Hg) तामान – 38.83°C (-39)
पृथ्वी तल पर सर्वाधिक पायी जाने वाली अधातु = ऑक्सीजन (O)
न्यूनतम ऊष्मा चालकता वाली धातु – सीसा (Pb)
सर्वाधिक कम आघातवर्धनीयता वाली धातु – सीसा (Pb)
सर्वाधिक खनन की जाने वाली धातु = आयरन (Fe)
सबसे हल्की धातु – लिथियम (Li)
सबसे भारी धातु – ऑस्मियम (OS)
किस धातु का घनत्व सर्वाधिक होता है – ठोस रूप में ऑस्मियम , द्रव रूप में पारा।
सबसे सक्रीय धातु – Li, Na व k (इन्हें केरोसीन तेल में डुबोकर रखा क्योंकि खुले में यह तुरन्त नमी के साथ आग पकड़ लेती)
- सबसे अक्रीय धातु (नॉबेल मेटल) सोना (Au), चाँदी (Ag), प्लेटिनम (P+) अक्रीय होने के कारण यह धातु प्रकृति में मुक्त रूप पायी जाती है।
किस धातु को सफेद सोना कहा जाता है-प्लैटिनम
किस धातु को क्विक सिल्वर कहा जाता है-मर्करी
पृथ्वी से सर्वाधिक खनन की जाने वाली धातु-लोहा
कौनसी अधातु द्रव अवस्था में पायी जाती है-ब्रोमीन (Br)
ठोस अवस्था में पायी जाने वाली अधातु जिसमें ऊर्ध्वपातन का गुण पाया जाता है – आयोडिन
ठोस अवस्था में पायी जाने वाली अधातु जिनके अपररूप पाये जाते हैं- कार्बन (C), सल्फर (S), फॉस्फोरस (P)
उपधातु – कुल उपधातु तत्व 7 होते हैं.
भोले | शिव | ऐसी | तेरी | आत्मा | जिए | सब |
B | Si | As | Te | At | Ge | Sb |
बोरोन | सि लिकन | आर्सेनिक | टेलूरियम | ऐस्टेटिन | जर्मेनियम | ऐन्टिमनी |
• सौर सेल में प्रयुक्त उपधातु तत्व = Si, Ge … जाता है,
नोबेल गैस – इन्हें अक्रिय गैस कहते है।
ये कुल 6 होती है।
ये एक परमाणुक गैसीय तत्व हैं।
हेमा | नेहा | और | करीना की | जींस | रंगीन |
He | Ne | Ar | Kr | Xe | Rn |
हिलियम | नियॉन | ऑर्गन | क्रिप्टॉन | जिनॉन | रेडॉन |
समस्थानिक | समभारिक | समन्यूट्रॉनिक- |
परमाणु जिनके परमाणु क्रमांक समान व द्रव्यमान संख्या अलग | परमाणु क्रमांक भिन्न व द्रव्यमान संख्या समान | न्यूट्रॉनों की संख्या समान हो, परंतु परमाणु क्रमांक भिन्न हो |
92U238 92U234 | 18Ar40 19K40 | 32Ge76 33As77 |
आइसोडायफियरसः
स्पीशीज जिनके लिए (न्यूट्रॉन-प्रोटॉन) की संख्या समान होती है।
कक्षकों में इलेक्ट्रॉन भरने का क्रम व इलेक्ट्रॉनीय विन्यास
1s< 2s < 2P <3s <3p < 4s < 3d < 4p <5p < 4d <5p < 6s < 4f <5d < 6p < 7s < 5f < 6d <7p
उपकोशों से पहले प्रयुक्त अंक कक्षों की संख्या (n) को प्रदर्शित करते है
बोर कक्ष में इलेक्ट्रॉन का वेग व त्रिज्या –
इलेक्ट्रॉन का वेग (V) = Z/n x 2.186 x 108 सेमी/से n का मान बढ़ने पर इलेक्ट्रॉन का वेग घटता है व Z का मान बढ़ने पर इलेक्ट्रॉन का वेग बढ़ता है।
त्रिज्या (r) = 0.529 x n2 /ZA°
हाइड्रोजन परमाणु के लिए Z = 1 तथा n = 1 हो तो पहली कक्षा के लिए r= 0.529 A° होगी इसे बोर त्रिज्या कहते है।
बोर कक्ष में इलेक्टॉन की ऊर्जा
En= – [(2π2me4z2) /(n2h2)]
यहाँ En = n वें कोश में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान = 9.109 x 10-28 gm __
e = इलेक्ट्रॉन का आवेश = 4.8029 x 10-10 gm emu
h = प्लांक स्थिरांक = 6. 62 x 10-27 अर्ग सेकण्ड ।
z = परमाणु क्रमांक
परमाणु संरचना की आधुनिक अवधारणा
1. डी. ब्रॉग्ली
डी ब्रॉग्ली के अनुसार इलेक्ट्रॉन की प्रकृति दोहरी होती है तथा यह एक ही समय में कण व तरंग दोनों के जैसा व्यवहार करता है।
2. हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत:
किसी भी क्षण किसी सूक्ष्म कण की स्थिति व संवेग दोनों के मानों को यथार्थता के साथ ज्ञात करना संभव नहीं है।
क्वाटम संख्याएँ
परमाणु में प्रत्येक इलेक्ट्रॉन की स्थिति, प्रकृति व उसकी ऊर्जा ज्ञात करने के लिए चार संख्याओं की आवश्यकता होती है, जिन्हें क्वांटम संख्यायें कहते है।
मुख्य क्वान्टम संख्या:- यह क्वांटम संख्या इलेक्ट्रॉन की नाभिक से दूरी अर्थात इलेक्ट्रॉन के कक्ष अथवा कोश का आकार बताती है। यह इलेक्ट्रॉन के मुख्य ऊर्जा स्तर को भी दर्शाती है।
2. द्विगंशी क्वान्टम संख्या (l):- यह क्वाटम संख्या इलेक्ट्रॉन अभ्र या इलेक्ट्रॉन के उपकक्ष की आकृति, उसके कोणीय संवेग को दर्शाती है, इसे l से प्रदर्शित करते है। किसी निश्चित मुख्य क्वान्टम संख्या (n) के लिए द्विगंशी क्वान्टम संख्या (l) के मान 0 से (n – 1) तक होते है तथा प्रत्येक का मान एक उपकोश (उप ऊर्जा स्तर)का निर्धारण करता है। । के कुल मानों की संख्या n के बराबर होती है। उदाहरणार्थ n = 4 . I = 0 से 3 (0, 1, 2, 3)
किसी भी उपकोश में उपस्थित अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2 (2l + 1) होती है
चुम्बकीय क्वाटम संख्या (m):- यह क्वाटम संख्या चुम्बकीय क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन के व्यवहार को वर्णित करती है। यह क्वाटम संख्या इलेक्ट्रॉन अभ्र के अन्तराकाश में अभिविन्यास का निर्धारण करती है। इसका मान द्विगंशी क्वाटंम संख्या (I) के मानों पर निर्भर करती है। इनके कुल मान -1 से +7 तक होते है जिनमें शून्य भी शामिल है। m के कुल मान (2l + 1) के बराबर होते है। जो कक्षकों की संख्या को इंगित करते है। m = – l, – (l– 1), …….. 0 ……… (l – 1) + !
चक्रण क्वाटम संख्या (s):- यह क्वाटम संख्या इलेक्ट्रॉन के अपने अक्ष पर चक्रण करने की दिशा को इंगित करती है। चक्रण क्वांटम संख्या के दो मान क्रमशः + 1/2 व -1/2 होते है। यदि चक्रण विपरीत हो तो कक्षक में अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या दो हो सकती है।
प्रमुख तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
आवर्त सारणी
1869 में रूसी वैज्ञानिक मैण्डेलीफ ने तत्वों के वर्गीकरण का सही प्रयास किया।
मेण्डेलीफ ने तत्वों के वर्गीकरण का आधार परमाणु भार मानते हुए वर्गीकरण किया।
“तत्वों के भौतिक व रासायनिक गुण उन तत्वों के परमाणु भारों के आवर्ती फलन होते हैं, इसे मैण्डेलीफ का आवर्त नियम कहते है।”
आधुनिक आवर्त
मेण्डेलीफ की आवर्त सारणी के दोषों को दूर करते हुए मोसले ने आधुनिक आवर्त नियम प्रस्तुत किया
जिसके अनुसार “तत्वों के भौतिक व रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांक के आवर्तीफलन होते है।”
परमाणु क्रमांक में वृद्धि के साथ तत्वों को आवर्त सारणी में व्यवस्थित करने पर एक वर्ग में आने वाले तत्वों के बाह्य कोश के इलेक्ट्रॉनीय विन्यास समान होते है। इसी कारण इनके रासायनिक गुण भी समान होते है।
इस नियम के अनुसार मोसले ने तत्वों को उनके परमाणु क्रमांको के वृद्धि क्रम में रखकर सारणी में व्यवस्थित किया।
यह सारणी आवर्त सारणी का दीर्घ रूप कहलाती है।
वर्ग- आधुनिक आवर्त सारणी में 18 वर्ग हैं
आवर्त-
प्रथम आवर्त | 2 | अति लघु आवर्त |
दूसरा आवर्त | 8 | लघु आवर्त |
तीसरा आवर्त | 8 | लघु आवर्त |
चौथा आवर्त | 18 | दीर्घ आवर्त |
पांचवा आवर्त | 18 | दीर्घ आवर्त |
छठा आवर्त | 32 | अति दीर्घ आवर्त |
सातवां आवर्त | अपूर्ण | अपूर्ण आवर्त |
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर तत्वों का वर्गीकरण
निम्न प्रकार है
- s ब्लॉक तत्व- प्रथम दो वर्गो के तत्वों को s ब्लॉक खण्ड तत्व कहा जाता है क्योंकि इन तत्वों का अन्तिम इलेक्ट्रॉन बाहय कोश के s उपकोश में होता है। बाहृय कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns1 या ns2 होता है।
- P ब्लॉक तत्व- अन्तिम छः वर्ग (13-18) के तत्व P ब्लॉक तत्व कहलाते है इन तत्वों के बाह्य कोश का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास ns2 np1-6 होता है क्योंकि इनका अन्तिम इलेक्ट्रॉन बाह्य कोश के P उपकोश में प्रवेश करता है। 18 वां वर्ग (ns2-ns6) वाले सभी तत्व उत्कृष्ट गैसो का समूह है। इनके बाह्य कक्षक पूर्ण भरे होने के कारण ये स्थायी व अक्रियाशील होते है।
- d ब्लॉक तत्व- परमाणु क्रमांक 58 – 71 के 14 तत्वों को लेन्थेनाइड श्रेणी कहते है।
- f ब्लॉक तत्व – 90 – 103 परमाणु क्रमांक वाले 14 तत्वों को एक्टिनॉइड श्रेणी कहते है। इन्हें आर्वत सारणी में नीचे अलग से रखा गया है। इन तत्वों का अन्तिम इलेक्ट्रॉन (n – 2) कोश के f उपकोश में प्रवेश करता है।
बोर का वर्गीकरण
(1) उत्कृष्ट गैसे- इन तत्वों के परमाणु के बाह्यतम कोश के S व P उपकोश पूर्णतया ” भरे होते है। {ns p°
विन्यास) He (1s’) शून्य वर्ग ..
(2) प्रतिनिधि या प्रसामान्य तत्व- इन तत्वों के परमाणुओं के बाह्यतम कोश अपूर्ण रहते है तथा आन्तरिक कोश पूर्णतः भरे रहते है। आन्तरिक कोश (Is…….2nd…….(n – 1)th कोस) पूर्ण पूरित, बाहय विन्यास ns1 से ns2 p5 {s व p खण्ड} , वर्ग IA, IIA………..VIIA (धातु, अधातु, उपधातु)
(3) संक्रमण तत्व- इन तत्वों के परमाणु क आन्तम या उपान्त्य कोश अपूर्ण होते है तथा आन्तरिक कोश पूर्ण रहते है। आन्तरिक कोश 1st………..2nd………(n – 2)th कोश
बाह्य विन्यास- (n – 1)di-lons1 यार (d खण्ड)
(4) आन्तरिक संक्रमण तत्व- इन तत्वों के परमाणुओं के अन्तिम, उपान्त्य तथा पूर्ण उपान्त्य कोश अपूर्ण रहते है। आन्तरिक कोश (1st……2nd (n-3)th) पूर्ण पूरित । बाह्य कोश (n – 2)S2 P6 d10 f1-14
(n-1)S2 P6 d0-1 ns2 {f- खण्ड)
तत्वों के परिवार
H, Li, Na, K, Rb, Cs व Fr…… क्षार धातु परिवार
Be, Mg, Ca, Sr, Ba, Ra…… क्षार मृदा धातु परिवार
B, Al, Ga, In, Ti……….. बोरोन परिवार का
C, Si, Ge, Sn, Pb……. कार्बन परिवार
N, P, As, Sb, Bi………. नाइट्रोजन परिवार
O, S, Se, Te…………….. ऑक्सीजन परिवार
F, Cl, Br, I………………. हैलोजन परिवार
He, Ne, Ar, Kr, Xe, Rn… अक्रिय गैसे
आवर्त सारणी में गुणों की आवर्तिता – जब आवर्त सारणी में तत्वों को बढ़ते परमाणु क्रमांक के क्रम में व्यवस्थित किया जाता है तो समान गुणों वाले तत्व . निश्चित अन्तराल के बाद पुनरावर्तित होते है, इस प्रकार के गुण को आवर्तिता कहते है।
आवर्तिता का मुख्य कारण बाह्यतम कोश के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की पुनरावृत्ति है।
परमाणु आकार –
(a) एक ही आवर्त में बाँयीं से दाँयी ओर जाने पर परमाणु क्रमांक में वृद्धि होती है। परन्तु बाह्य कोश n अपरिवर्तित रहने से संयोजकता कोश के इलेक्ट्रॉनों पर नाभिकीय आवेश का आकर्षण बढ़ता है जिससे परमाणु का आकार क्रमशः कम होता है। एक ही वर्ग में ऊपर से नीचे की ओर जाने पर परमाणु का आकार बढ़ता है क्योंकि एक ही वर्ग में ऊपर से नीचे क्रमशः कोशों की संख्या में वृद्धि होती जाती है साथ ही नाभिकीय आवेश भी बढ़ता जाता है लेकिन कोशों की संख्या का कारक नाभिकीय आवेश की तुलना में अधिक प्रभावी होता है जिसमें परमाणवीय आकार बढ़ता है।
आयनन विभव –
किसी उदासीन गैसीय परमाणु के बाह्यतम कोश से एक इलेक्ट्रॉन पृथक करने हेतु आवश्यक ऊर्जा प्रथम आयनन ऊर्जा (विभव) कहलाती है।
Ma + ऊर्जा ___ M+ + गैसीय परमाणु गैसीय धानायन इलेक्ट्रान
(a) एक ही आर्वत में बाँयीं से दाँयी ओर जाने पर परमाणु क्रमांक तथा नाभिकीय आवेश में वृद्धि होती है अतः बाह्यतम कोश से इलेक्ट्रॉन पृथक करने हेतु ऊर्जा के मान में वृद्धि होती है। अतः आयनन विभव के मान में वृद्धि होती है।
(b) अर्द्धपूरित कक्षकों व पूर्ण पूरित कक्षकों का स्थायित्व अधिक होने के कारण इनके आयनन विभवों के मान अपवाद स्वरूप उच्च होते है। 18 वें वर्ग के तत्वों के आयनन विभव अपने आवर्त में अधिकतम होते है। एक ही वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर परमाणु आकार में वृद्धि होती है, अत: बाह्यतम कोश में स्थित इलेक्ट्रॉनों पर नाभिकीय आकर्षण बल कम होने के कारण इलेक्ट्रॉन सरलता से पृथक हो जाते है एवं कम ऊर्जा व्यय होती है। अतः एक ही वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर आयनन विभव के मानों में कमी होती है।
विद्युत ऋणता –
अणु में किसी परमाणु द्वारा बंधित इलेक्ट्रॉनों को आकर्षित करने की क्षमता को विद्युत ऋणता कहते है। किसी आवर्त में बाये से दायें जाने पर तत्वों की विद्युत ऋणता के मानों में वृद्धि होती है जबकि एक ही वर्ग में ऊपर से नीचे आने पर विद्युत ऋणता के मान में कमी होती है। फ्लुओरीन की विद्युत ऋणता का मान 4 होता है जो आर्वत सारणी में सर्वाधिक होता है
इलेक्ट्रॉन बन्धुता –
उदासीन गैसीय परमाणु के बाह्यतम कोश में एक इलेक्ट्रॉन जोड़ने पर मुक्त हुई ऊर्जा इलेक्ट्रॉन बंधुता कहलाती है
एक ही आवर्त में बाँयें से दाँयें जाने पर इलेक्ट्रॉन बंधुता के मान में वृद्धि होती है जबकि एक ही वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर इलेक्ट्रॉन बन्धुता के मान में कमी होती है।
उत्कृष्ट गैसों की इलेक्ट्रॉन बंधुता का मान शून्य या ‘ऋणात्मक होता है।
क्लोरिन की इलेक्ट्रॉन बंधुता सर्वाधिक होती है।
परमाण्वीय त्रिज्या:एक परमाणु के बाह्यतम इलेक्ट्रॉन और नाभिक के मध्य दूरी को परमाण्वीय त्रिज्या कहा जाता है।
(1) सहसंयोजक त्रिज्या- एक ही तत्व के एकल अध्रुवीय सहसंयोजक बन्ध द्वारा बंधित दो परमाणुओं के मध्य की अन्तरानाभिकीय दूरी का आधा, सहसंयोजक त्रिज्या कहलाती है। क्लोरिन अणु (CI-CI) में अन्तरानाभिकीय दूरी 1.98A° है अत: CI की सहसंयोजक त्रिज्या 1.98/2 = 0.99 A° है।
(2) धात्विक त्रिज्या- धात्विक क्रिस्टल जालक में दो निकट स्थित धातु परमाणुओं के मध्य की अन्तरानाभिकीय दूरी का आधा धात्विक त्रिज्या कहलाती है। धात्विक क्रिस्टल में धातु परमाणु एक निश्चित ज्यामिति में पास-पास संकुलित होते है। उदाहरण:-Cu के लिए धात्विक त्रिज्या का मान = 2.56 | 2 = 1.28 A° होता है।
धात्विक त्रिज्या > सहसंयोजक त्रिज्या
(3) वान्डरवाल त्रिज्या- दो समान द्वि परमाणुक अणुओं में अबन्धित सन्निकट परमाणुओं के नाभिकों के बीच की दूरी को अन्तराण्विक दूरी कहते है। इसके आधे मान को (:वान्डरवाल त्रिज्या कहते है।
वान्डरवाल त्रिज्या > धात्विक त्रिज्या > सहसंयोजक त्रिज्या
रसायनिक बंध
आवेशित परमाणु आयन कहलाते है।
धनायन- उदासीन गैसीय परमाणु द्वारा इलेक्ट्रॉन त्यागने पर इलेक्ट्रॉन की संख्या प्रोटॉन से कम हो जाती है व परमाणु धनावेशित हो जाता है। उदासीन गैसीय परमाणु के संयोजन कोश से इलेक्ट्रॉन त्यागने से प्राप्त आयन धनायन कहलाते है। इलेक्ट्रॉन इस प्रक्रिया के लिए आवश्यक ऊर्जा को आयनन विभव कहते है।
ऋणायन- उदासीन गैसीय परमाणु के संयोजकता कोश में एक या अधिक इलेक्ट्रॉन जोड़ने से प्राप्त आयन ऋणाय कहलाता है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा निकलती है जिसे इलेक्ट्रॉन बंधुता कहते है।
धानायन का आकार अपने संगत उदासीन परमाणु से छोटा होता है।
ऋणायन का आकार अपने संगत उदासीन परमाणु से बड़ा होता है।
तत्व | गोल्ड Au | कॉपर Cu | पारा Hg | सीसा Pb | लोहा Fe | टिन Sn | आर्सेनिक As |
संयोजकता | 3,5 | 1,2 | 1,2 | 2,4 | 2,3 | 2,4 | 3,5 |
कम संख्या वाली संयोजकता के लिए अस (ous) अनुलग्न तथा अधिक संख्या वाली संयोजकता के लिए इक (ic) अनुलग्न प्रयोग करते है।
आयनिक बंध (वैद्युत संयोजक बंध):-
जब एक धन विद्युती तत्व एक ऋण विद्युती तत्व के सम्पर्क में आता है तो धन विद्युत तत्व अपना इलेक्ट्रॉन त्यागकर और ऋण विद्युती तत्व इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके क्रमशः धनायन तथा ऋणायन बन जाते है।
इस प्रकार निर्मित धनायन व ऋणायन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निकटतम उत्कृष्ट गैस के स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के समान हो जाता है। ये विपरीत आवेशित बल द्वारा परस्पर जुड़ जाते है।
विपरीत आवेशित आयनों के बीच के आकर्षण बल को आयनिक या वैद्युत संयोजक बंध कहते हैं। वैद्युत संयोजकता आयन पर उपस्थित आवेश की इकाइयों की संख्या के बराबर होती है।
- आयनिक यौगिकों के गुण आयनिक यौगिक प्रायः ठोस होते है क्योंकि वे स्थिर वैद्युत आकर्षण बल द्वारा एक निश्चित व्यवस्था में संकुलित रहते है जिसे क्रिस्टल जालक कहते है। जैसे NaCl घन रचना में पाया जाता है।
- आयनिक यौगिक संगलित अवस्था में तथा जलीय विलयन में विद्युत का संचालन करते है।
- आयनिक यौगिक प्रायः कठोर होते है तथा आयनों के आवेश में वृद्धि तथा बीच की दूरी में कमी होने से कठोरता में वृद्धि होती है।
- गलनांक व क्वथनांक उच्च होते है। बंध में आयनिक गुणों की वृद्धि के साथ गलनांक व क्वथनांक में वृद्धि होती है।
- आयनिक यौगिक जल जैसे ध्रुवीय विलायकों में विलेय व अध्रुवीय विलायक जैसे कार्बन टेट्राक्लोराइड, बेन्जीन आदि में अविलेय होते है।
- आयनिक यौगिक बाह्य बल या दाब लगाने पर छोट-छोटे टुकड़ों में विभक्त हो जाते है। ऐसे पदार्थ भंगुर कहलाते है व यह गुण भंगुरता कहलाता है।
1. सहसंयोजक बंध
जब दो लगभग समान विद्युत ऋणता वाले परमाणु या एक ही तत्व के दो परमाणु इलेक्ट्रॉनों का साझा करते है जो उनके मध्य सहसंयोजक बंध का निर्माण होता है। इस बंध को सीधी रेखा (-) से दर्शाते है। इस बंध में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनों पर प्रत्येक साझित परमाणु का अधिकार होता है।
समतल सहसंयोजक यौगिको के गुणधर्म सहसंयोजक यौगिकों के अणुओं के बीच दुर्बल वान्डरवाल बंध उपस्थित होते है, अतः सहसंयोजक यौगिक साधारण ताप व दाब पर गैसीय या द्रव अवस्था में रहते है।
कुछ सहसंयोजक यौगिक ठोस भी होते है जैसे- हीरा, ग्रेफाइट गंधक आदि।
सहसंयोजक यौगिक क्रिस्टलीय व अक्रिस्टलीय दोनों संरचना दर्शाते है।
दुर्बल वान्डरवाल्स बल होने के कारण क्रिस्टल तोड़ने के लिए आवश्यक ऊर्जा कम होती है, अतः गलनांक व क्वथनांक कम होते है।
मुक्त इलेक्ट्रॉन व मुक्त आयन का अभाव होने के कारण विद्युत के कुचालक होते है। अपवाद- HCI
अध्रुवीय विलायक जैसे बेंजीन, कार्बन टेड्राक्लोराइड आदि में विलेय व ध्रुवीय विलायक जैसे जल आदि में अविलेय होते है।
- उपसहसंयोजक बंध-
जब इलेक्ट्रॉन युग्म साझे के लिए अणु, एक परमाणु द्वारा दिया जाये तो परमाणुओं के मध्य उपसहसंयोजक बंध बनता है। इस इलेक्ट्रॉन युग्म पर दोनों परमाणुओं का समान अधिकार होता है।
उपसहसंयोजक यौगिकों के गुण
उपसहसंयोजक यौगिकों में आयनिक व सहसंयोजक दोनों ही लक्षण उपस्थित होते है। आंशिक रूप से ध्रुवीय, जल में अल्पविलय लेकिन कार्बनिक विलायकों में घुलनशील होते है।
विशिष्ट उदाहरण
- आयनिक व सहसंयोजक बंधयुक्त यौगिक – KCN, KCO, KOH
- सहसंयोजक व उपसहसंयोजक बंध युक्त यौगिक – SO,, CH,NC, CO
- आयनिक, सहसंयोजक व उपसहसंयोजक बंध युक्त यौगिक – Cuso, K, Fe (CN),
- गैसीय सह संयोजक यौगिक – 0,, N., F, Co.
- द्रव सहसंयोजक यौगिक – Br, (वाष्पशील द्रव)
- ठोस सहसंयोजक यौगिक – SiO,, हीरा, ग्रेफाइट, S., P,
अणुओं की ज्यामिति
बंध युग्मों की संख्या | ज्यामिति | बंधकोण |
2 | रेखीय | 180° |
3 | त्रिभुजी | 120° |
4 | चतुष्फलकीय | 109°.28’ |
5 | त्रिभुजीय द्विपिरामिडीय | 120° व 90° |
6 | अष्ट फलकीय | 90° |
7 | पंचभुजीय द्विपिरामिडीय | 72° व 90° |
यौगिक के प्रकार
आयनिक यौगिक | सहसंयोजक यौगिक |
धातु – अधातु परमाणु की क्रिया से निर्मित होते है। अथवा धनायन – ऋणायन की क्रिया से निर्मित अथवा इलेक्ट्रॉन के आदान-प्रदान से | अधातु – अधातु परमाणु की क्रिया से निर्मित अथवा इलेक्ट्रॉन के साझे से निर्मित |
विधुत ऋणता में अंतर अधिक होने पर | विधुत ऋणता में अंतर कम/समान होने पर |
विलेयता = ध्रुवीय विलायकों में विलेय, जैसे – जल | अध्रुवीय विलायकों में विलेय, जैसे – बेंजीन, ईथर |
जल को सार्वद्रिक विलायक कहा जाता है।
भौतिक और रासायनिक परिवर्तन
भौतिक परिवर्तन | रासायनिक परिवर्तन |
पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन जैसे – गलन, क्वथन सघनन आदि। | पदार्थ की अवस्था परिवर्तन हो सकती है लेकिन हमेशा नहीं। |
नया पदार्थ नहीं बनता है। | नया पदार्थ बनता है। |
अस्थायी | स्थायी |
उत्क्रमणीय | अनुत्क्रमणीय |
उदा.- धातुओं का पिघलना, काँच का टूटना, बल्ब का जलना व बुझना आदि | उदा.- लकड़ी का जलना, दूध से दही बनना। लोहे पर जंग लगना |
- योगात्मक अभिक्रिया
तत्व + तत्व → यौगिक
तत्व + यौगिक → यौगिक
यौगिक → यौगिक + यौगिक
2. अपघटन अभिक्रिया –
यौगिक → तत्व + तत्व
यैगिक → तत्व + यौगिक
यौगिक → यौगिक + यौगिक
3. विस्थापन अभिक्रिया
तत्व + यौगिक → तत्व + यौगिक
4. द्विविस्थापन अभिक्रिया
यौगिक + यौगिक → यौगिक + यौगिक
ऑक्सीकरण | अपचयन |
e– त्यागना व धनायन बनाना | e– ग्रहण करना व ऋणायन बनाना |
धनावेश में वृद्धि | ऋणावेश में वृद्धि |
ऋणावेश में कमी | धनावेश में कमी |
ऋण विधुती तत्व जैसे O2, Cl2, Br2, आदि का जुड़ना। | ऋण विधुती तत्व का हटना |
ऋण विद्युती तत्व की वृद्धि | ऋण विद्युती तत्व की कमी |
सभी योगात्मक अभिक्रिया | सभी अपघटन अभिक्रिया |
उत्प्रेरक – पदार्थ जो रासायनिक अभिक्रिया के वेग में परिवर्तन करता है लेकिन स्वयं अपरिवर्तित रहता है
उत्प्रेरक की विशेषताएं
अभिक्रिया शुरू नहीं करता, केवल वेग परिवर्तित करता है।
उत्प्रेरक की बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
उत्प्रेरक अभिक्रिया विशिष्ट होता है।।
उत्प्रेरक के रासायनिक संघटन में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उत्प्रेरक के प्रकार –
धनात्मक उत्प्रेरक – वे उत्प्रेरक जो अभिक्रिया वेग को बढ़ाते हैं।
ऋणात्मक उत्प्रेरक – वे उत्प्रेरक जो अभिक्रिया वेग को कम करते हैं।
जैव उत्प्रेरक (Bio – Catalyst) – सजीवों के समस्त जैविक प्रक्रम को संचालित करने वाले एन्जाइम जैव उत्प्रेरक कहलाते हैं। जैसे – पेप्सिन, लाइपेज, रेनिन, टायलिन आदि।
उत्प्रेरण – उत्प्रेरक द्वारा रासायनिक अभिक्रिया के वेग में परिवर्तन की क्रिया को उत्प्रेरण कहते हैं। यह निम्न दो प्रकार का होता है
समांगी उत्प्रेरण- जब अभिक्रिया में अभिकारक का संयोग) और उत्प्रेरक की भौतिक अवस्था एक समान होती है। तो उसे समांगी उत्प्रेरण कहते हैं।
विषमांगी उत्प्रेरण-समांगी उत्प्रेरण-जब अभिक्रिया में अभिकारक और उत्प्रेरक की भौतिक अवस्था
एक असमान होती है। तो उसे विषमांगी उत्प्रेरण कहते हैं।
Note : समांगी उत्प्रेरण अभिक्रिया वेग को घटाता है जबकि विषमांगी उत्प्रेरण अभिक्रिया वेग को बढ़ाता है।
ऑक्सीकरण- अपचयन
ऑक्सीकरण
वह अभिक्रिया-
- जिसमें किसी पदार्थ का ऑक्सीजन अथवा अन्य ऋण विद्युती तत्व (या मूलक) के साथ संयोजन होता है अथवा
- उसमें से हाइड्रोजन या धन विद्युती तत्व (या मृलक) बाहर निकलता है, ऑक्सीकरण कहलाती है। ऑक्सीकरण को उपचयन अभिक्रिया भी कहा जाता है।
अपचयन:- वह अभिक्रिया
- जिसमें किसी पदार्थ के साथ हाइड्रोजन या धन विद्युत तत्व (या मूलक) का संयोग होता है अथवा
- उसमें से ऑक्सीजन या ऋण विद्युती तत्व (या मूलक) बाहर निकलता है, अपचयन कहलाती है।
रेडॉक्स अभिक्रिया :- इलेक्ट्रॉन संकल्पना के अनुसार जिन रासायनिक अभिक्रियाओं में एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में इलेक्ट्रॉनों का स्थानान्तरण होता है, ऑक्सीकरण- अपचयन अभिक्रियायें या रेडॉक्स अभिक्रियायें या उपापचयन अभिक्रियायें कहलाती है।
ऑक्सीकारक
कोई भी परमाणु आयन या अणु जो इलेक्ट्रॉन ग्रहण करता है ऑक्सीकारक कहलाता है। ऑक्सीकारक इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर अपचयित हो जाता है।
अपचायक
कोई भी परमाणु, आयन या अणु जो इलेक्ट्रॉन त्यागता है, अपचायक कहलाता है। अपचायक इलेक्ट्रॉन त्याग कर ऑक्सीकृत हो जाता है।
Note:- मुक्त तत्व की संयोजकता शून्य मानी जाती है।
अम्ल व क्षार
अम्लः-
एसिड (Acid) शब्द की उत्पति लैटिन भाषा के शब्द ऐसिड्स से हुई जिसका शाब्दिक अर्थ है खट्टा। अम्ल स्वाद् में खट्टे होते है।
- अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल करते है।
- अम्ल धातुओं से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस देते है।
- अम्ल धातुओं के कार्बोनेटो से क्रिया कर Co2 गैस देते है।
- अम्ल धातु के बाइकार्बोनेटों से क्रिया करके Co, गैस देते है।
- अम्ल का जलीय विलयन विद्युत का चालक होता है।
- अम्ल क्षार से क्रिया करके अपने गुण नष्ट कर लेते है व लवण व जल बनाते है।
- अम्ल अच्छे विलायक होते है।
- अम्ल संक्षारक होते है यह त्वचा पर गिरने पर नुकसान पहुँचाते है।
- आरेनियस संकल्पना अम्ल वे हाइड्रोजन युक्त पदार्थ है जो जल में घोले जाने पर हाइड्रोजन आयन उत्पन्न करते है। HCI (g) + HO (1) H (जलीय) + CF (जलीय)
- प्रबल अम्ल- वे अम्ल जो जल में घुलने पर साधारणतः पूर्ण आयनित हो जाते है, प्रबल अम्ल कहलाते है। उदाहरण:- HCI, H2SO4 आदि
- दुर्बल अम्ल- वे अम्ल जो जल में घुलने पर अल्प आयनित होते है, दुर्बल अम्ल कहलाते हैं।
अम्ल की क्षारकता- अम्ल में उपस्थित प्रतिस्थापन योग्य H+ आयनों की संख्या को क्षारकता कहते। जैसे अम्ल (HCI) की क्षारकता =1
Note:- H3PO3 व H3PO2 की संरचना के आधार पर क्षारकता 2 व 1 है।
क्षार:-क्षार छूने पर चिकने होते है। साबुन, चूने का पानी आदि क्षार है। अतः क्षार
- क्षार लाल लिटमस पत्र को नीला कर देते है।
- क्षार स्वाद में कड़वे होते है।
- क्षार का जलीय विलयन विद्युत का सुचालक होता है।
- क्षार अम्ल से क्रिया करके अपने गुण नष्ट कर लेते है तथा लवण व जल बनाते है।
- क्षार कार्बनिक पदार्थो का क्षय करते है।
आरेनियस संकल्पना:क्षार वे हाइड्रोजन युक्त पदार्थ है जो जल में घुलने पर हाइड्रॉक्सिल आयन देते है।
दुर्बल क्षार- वे क्षार जो जल में घुलने पर अल्प आयनित होते है,
प्रबल क्षार- वे क्षार जो जल में घुलने पर साधारणतः पूर्ण आयनित हो जाते है, तो उन्हें प्रबल क्षार कहते है।
क्षारों की अम्लता- क्षार में उपस्थित प्रतिस्थापन योग्य OH– आयनों की संख्या को क्षारों की अम्लता कहते है।
बॉस्टेड लोरी संकल्पना
अम्ल- अम्ल वे हाइड्रोजन युक्त पदार्थ है जो दूसरे पदार्थ को एक या अधिक प्रोटॉन देने की क्षमता रखते है।
क्षार- क्षार वे पदार्थ है जो दूसरे पदार्थ से प्रोटॉन ग्रहण करने की प्रवृति रखते है
प्रमुख खनिज अम्ल
- सल्फ्यूरिक अम्ल-रासायनिक सूत्र – H2SO4,
साधारण नाम – गंधक का अम्ल
अम्लों का राजा ऑयन ऑफ विट्रॉल
क्षारकता – अम्ल से मुक्त हाइड्रोजन H+ आयनों की संख्या द्विक्षारकीय भी कहते हैं।
उर्वरक निर्माण – अमोनियम सल्फेट (NH4) = SO4 पोटेशियम सल्फेट K2So4
निर्जल कारक के रूप में
पेट्रोलियम शुद्धिकरण
शीशा संचायक सेल (द्वितीयक सेल)
- नाइट्रीक अम्ल-रासायनिक सूत्र – HNO3,
- साधारण नाम – शोरे का अम्ल
- क्षारकता – 1 (एक क्षारकीय)
- उपयोग-विस्फोटक सामग्री TNT, TNG पिक्रिक अम्ल नाईटर (शोरा) – KNO3
- दवाईयाँ, रंजक, सुगन्धित पदार्थ, परफ्यूम का निर्माण।
- कृत्रिम रेशम के निर्माण में- जैसे – सेल्युलॉज से रेयॉन का निर्माण।
लिटमस पत्र- लाइकेन पादप की छाल से बनाते हैं। लिटमस पत्र का प्राकृतिक रंग-बैंगनी
- हाइड्रोक्लोरिक अम्ल – रासायनिक सूत्र-HCl
- साधारण नाम – नमक का तेजाब क्षारकता – एक
- उपयोग – विस्फोटक पदार्थ
- टेनिंग प्रक्रम – जन्तुओं की खाल से चमड़ा तैयार करना। हड्डियों से जिलेटिन छड़ों का निर्माण एक्वारेजिया (अम्ल राज)-3 भाग HCL + एक भाग HNO, का मिश्रण
- उपयोग – अक्रिय धातु (सोना, चाँदी, प्लेटिनम) को घोलने में या – गलाने में। “प्रमुख खाद्य अम्ल
- सिट्रिक अम्ल – नींबू, संतरा, आँवला आदि।
- टार्टरिक अम्ल – इमली, अंगूर।
- लैक्टिक अम्ल – दही, छाछ, दूध।
- ऑक्जेलिक अम्ल – टमाटर।
- मौलिक अम्ल – सेब, तरबूज।
- एसीटिक अम्ल – सिरका। लवण
प्रकृति – उदासीन। लिटमस पत्र का कोई रंग परिवर्तन नहीं।
HCI + NaOH NaCl + H2O अम्ल क्षारक लवण जल उदासीनिकरण अभिक्रिया
ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया
सर्वाधिक वेग वाली अभिक्रिया।
pH मापक्रम-किसी विलयन में H+ आयन सान्द्रता को ऋणात्मक लघुगुणक। सोरेनसन द्वारा प्रस्तुत।
OP- Potenz (घातांक) SH – आयन सान्द्रता
pH = – log [H] – सान्द्रता
अम्लीय
उदासीन
.pH=7
क्षारीय DH=14 PH%30
पदार्थ की अम्लीयता “DH
पदार्थ की pH I AT क्षारीयता « pH
pHT BT प्रमुख पदार्थों के pH मान
- मानव रक्त : 7.4
- आँसू : 7.4
- लार : 6.8
- यूरीन : 4.8 – 8.4 (6.0)
- जठर रस : 1 से 3.5
- सीमन : 7.2 से 7.7
- दूध : 6.6
- नींबू रस : 2.2
- टमाटर रस : 3.8
- चाय, कॉफी : 4.5
- शुद्ध जल, वर्षा जल : 7.0
- समुद्र का पानी : 8.4
- हमारा शरीर 7.0 से 7.8 PH परास वेफ बीच कार्य करता है। जीवित प्राणी वेफवल संकीर्ण PH परास (परिसर) में ही जीवित रह सकते हैं। वर्षा जल PH मान जब 5.6 से कम हो जाती है तो वह अम्लीय वर्षा कहलाती है। अम्लीय वर्षा का जल जब नदी में प्रवाहित होता है तो नदी जल pH का मान कम हो जाता है। ऐसी नदी में जलीय जीवधारियों की उत्तरजीविता कठिन हो जाती है।
विलयन –
विलयन दो या दो से अधिक पदार्थो के समांगी मिश्रण को विलयन कहते है। समांगी से अर्थ मिश्रण के प्रत्येक भाग में एक सा रासायनिक संघटन होना है तथा एक से भौतिक गुणों का विद्यमान होना है।
उदाहरण:- जल में शक्कर का विलयन।
यदि विलयन में दो अवयव हो तो उसे द्विअंगी और यदि तीन अवयव हो तो उसे त्रिअंगी विलयन कहते है।
उदाहरण:- नमक का विलयन द्विअंगी है। विलयन बनाने के लिए एक पदार्थ को घोला जाता है जिसे विलय तथा जिसमें घोला जाता है उसे विलायक कहा जाता है।
के प्रकार
उदाहरण किन्हीं दो गैसों का मिश्रण, वायु कुहासा (mist), वायु में जल किसी ठोस का उर्ध्वपातन, धुंआ अमोनियाकृत जल, सोडा वाटर , ऐल्कोहल में जल , नमक जल में, शक्कर जल में, पेन्ट, नाइट्रोजन टाइटेनियम में, झॉवा पत्थर, चारकोल, सोने में पारा, जिंक में पारा (अमलगम) तांबा सोने में, जस्ता तांबे में, मिश्र धातुएँ
विलेय की ग्रामों में मात्रा विलेय का तुल्यांक भार – विलयन का आयतन लीटर में
N = M x संयोजकता (4) मोललता (m):- 1000 gm (1 किलो) विलायक में घुले
हुए विलेय के मोलों की संख्या को विलयन की मोललता कहते है।
विलेय के मोलों की संख्या मोललता (m) =
“x 1000 विलायक का भार परमाणु भार तत्व का परमाणु भार = तत्व के एक परमाणु का भार ।
हाइड्रोजन के एक परमाणु का भार किसी तत्व का परमाणु भार वह संख्या है जिससे यह ज्ञात होता है कि उस तत्व का एक परमाणु हाइड्रोजन के एक परमाणु के 1.008 भार भाग या ऑक्सीजन परमाणु के सोलहवें भार भाग या कार्बन परमाणु के बारहवें भार भाग से कितना गुना भारी है।
परमाणु भार व तुल्यांकी भार में सम्बन्ध
परमाणु भार = तुल्यांकी भार x संयोजकता
उदा. ऑक्सीजन का तुल्यांकी भार = ऑक्सीजन का परमाणु भार 16
संयोजकता अणुभार – किसी पदार्थ का अणुभार वह संख्या है जो यह प्रदर्शित करें कि उस पदार्थ का एक अणु हाइड्रोजन के एक परमाणु के 1.008 भार भाग से अथवा कार्बन के 1/12 भाग से कितना गुना भारी है। ऑक्सीजन का अणु कार्बन के एक परमाणु के 12 वें भाग से 32 गुना भारी है अत: ऑक्सीजन का अणु भार 32 है।
अणुभार = 2 x वाष्प घनत्व