कोशिका ( Cell ) 

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कोशिका ( Cell )

सेल (Cell) &

(लैटिन शब्द का अर्थ है छोटा कमरा) सभी ज्ञात जीवित जीवों की बुनियादी संरचनात्मक, कार्यात्मक और जैविक इकाई है

कोशिका को सर्वप्रथम 1665 में रॉबर्ट हुक ने कार्क के टुकड़े में देखा । उन्होंने एक माइक्रोस्कोप (Microscope) की मदद से कॉर्क स्लाइस (slices) में कोशिकाओं का अवलोकन किया। रॉबर्ट हुक द्वारा देखी गई कोशिका मृत कोशिका । 1674 में एण्टॉन वॉन ल्यूवेन हॉक जीवित पादप कोशिका को देखा ।

लीउवेनहॉक ने सबसे पहले 1674 में माइक्रोस्कोप की मदद से तालाब के पानी में जीवित कोशिकाओं का अवलोकन किया।

कोशिका सिद्धांत (Cell Theory):-

  • सेल सिद्धांत को 1838 में मथायस स्लेडेन (जर्मन वनस्पतिशास्त्री) और थियोडोर श्वान (ब्रिटिश प्राणी विज्ञानी) द्वारा सामने रखा गया था।
  • मौजूद कोशिकाएं विभाजित होती हैं और उनसे नई कोशिकाएं बनती हैं।
  • वायरस सेल सिद्धांत का पालन नहीं करते हैं ” link between living and non living being”

मथायस स्लेडेन व थियोडर श्वान ने कोशिका सिद्धान्त Cell Theory ) प्रस्तुत की । इस सिद्धान्त के अनुसार

1. प्राणी तथा पौधों के शरीर कोशिकाओं के बने होते हैं । कोशिका जीवों के शरीर की संरचनात्मक व इकाई होती है ।

2. नई कोशिका की उत्पत्ति पूर्ववर्ती कोशिका से होती है ।

·      कोशिकाओं का आकार और आकृति –

  • कोशिकाएं विभिन्न आकार और आकृति की हो सकती हैं। आम तौर पर, कोशिकाएं गोल, गोलाकार या लम्बी आकार में होती हैं, लेकिन कुछ कोशिकाएँ लंबी और दोनों सिरों पर (एक स्पिंडल आकार) नुकीली होती हैं, जबकि कुछ काफी लंबी होती हैं। कोशिकाओं का आकार और आकृति उनके द्वारा किए जाने वाले विशिष्ट कार्यों से संबंधित होता है। जैसे तंत्रिका कोशिकाओं का एक विशिष्ट आकार होता है।
  • सबसे छोटी कोशिका बैक्टीरिया में 0.1 से 0.5 माइक्रोमीटर होती है।
  • 170 मिमी × 130 मिमी मापने वाला सबसे बड़ा सेल, एक शुतुरमुर्ग का अंडा है।

सेल संरचना (Cell Structure)

  • कोशिका झिल्ली (plasma membrane)
  • केन्द्रक (Nucleous )
  • कोशिका द्रव्य
 पशु मेंPlantshuman body
सबसे बड़ी कोशिकाशुतुरमुर्ग का अंडाएसीटबुलेरियअण्डाणु
सबसे छोटी कोशिकामाइकोप्लाज्माएल्गियाशुकाणु
  • सबसे बड़ी जन्तु कोशिका शुतुरमुर्ग का अण्डा
  • सबसे छोटी जन्तु कोशिका – PPLO ( Pleuro Pneumonia like Organism ) नामक माइकोप्लाज्मा
  • मानव शरीर की सबसे बड़ी कोशिका अण्डाणु
  • मानव शरीर की सबसे छोटी कोशिका शुक्राणु –
  • सबसे बड़ी पादप कोशिका – एसीटैबुलेरिया ( एक कोशिकीय शैवाल )
  • सबसे छोटी पादप कोशिका – एल्गिया ( एक कोशिकीय शैवाल
  • मानव शरीर की सबसे लम्बी कोशिका – तंत्रिका कोशिका

कोशिका सिद्धांत का अपवाद

कोशिका दो प्रकार की होती है

1. प्रोकैरियोटिक

2. यूकेरियोटिक वायरस

संरचना के मूल पर, दो बुनियादी प्रकार की कोशिकाएं

अवयवProkaryotic CellEukaryotic Cell
कोशिका का आकारआम तौर पर आकार में छोटे ( 1 – 10 माइक्रोन)आम तौर पर आकार में बड़ा (5-100 माइक्रोन)
परमाणु क्षेत्रयह अच्छी तरह से परिभाषित नहीं हैयह अच्छी तरह से परिभाषित है और एक परमाणु झिल्ली से घिरा हुआ है
आनुवंशिक सामग्रीडीएनए वृत्ताकार है और कोशिका द्रव्य (कोई भी नाभिक) में नहीं रहता है ।डीएनए रैखिक है और नाभिक में निहित होता है।
कोशिका द्रव्यएंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम, माइटोकॉन्ड्रिया, गोल्गी तंत्र, सेंट्रोसोम आदि ज ैसे अंग की कमी ।इसमें एंडोप्लाज्मिक रेटिक ुलम, माइटोकॉन्ड्रिया, गोल्गी एपारटस, लाइसोसम्स, सेंट्रोसोम आदि ज ैसे अंग शामिल हैं।
 सैप वैक्यूलस की कमी है। गैस वक्यूलस हा सकता है ।  सैप वेक्यूल आमतौर पर मौजूद होते हैं।
कोशिका चक्रसेल चक्र लगभग 20-60 मिनट का है ।  सेल चक्र लगभग 12-24 घंटों का हा ेता है ।
न्यूक्लियसकोई नाभिक नहीं है ।एक या एक से अधिक नाभिक नाभिक के भीतर होते हैं।

यूकेरियोटिक कोशिकाओं को पशु कोशिकाओं और पौधों की कोशिकाओं में वर्गीकृत किया जाता है।

प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं ( अपकेन्द्रकीय कोशिकाएँ )

इन कोशिकाओं में आवरण युक्त केन्द्रक का अभाव होता है ।

आवरण रहित आनुवांशिक पदार्थ पाया जाता है इसे केन्द्रकाभ ( Nuclcleoid ) कहते हैं ।

माइटोकॉन्ड्रिया , हरितलवक , अन्तर्द्रव्यी जालिका जैसे दोहरी झिल्ली से आवरित कोशिकांग का अभाव होता है ।

हिस्टोन प्रोटीन का अभाव होता है । राइबोसोम =70s प्रकार के

उदाहरण – जीवाणु , नील हरित शैवाल , माइकोप्लाज्मा ।

यूकैरियोटिक ( सुकेन्द्रकीय कोशिकाएँ )

( Eu = well , Karyon nucleus ) कोशिकाएं इन कोशिकाओं में संगठित झिल्ली युक्त सुस्पष्ट केन्द्रक के साथ विकसित कोशिकांग पाये जाते हैं । राइबोसोम 80s प्रकार के

उदाहरण – बहुकोशिकीय प्राणी कोशिका , मनुष्य की कोशिकाएँ –

(1) कोशिका भित्ति ( Cell wall ) :

की खोज रॉबर्ट हुक

पशु और प्रोटोजोअन में कोशिका भित्ति नहीं होती है ।

यह पादप कोशिका का सबसे बाहरी आवरण है ।

सेल की दीवारें विशेष रूप से पौधों, कवक, बैक्टीरिया, शैवाल और कुछ आर्किया में पाई जाती है

प्रजातियों के आधार पर बैक्टीरियल सेल की दीवार पेप्टिडोग्लाइकन से बनी होती है ।

फंगी की कोशिका भित्ति ग्लूकोसामाइन पॉलिमर चिटिन से बनी होती है ।

शैवाल की कोशिका भित्ति ग्लाइकोप्रोटीन और पॉलीसेकेराइड से बनी होती है ।

लांट की सेल की दीवार मुख्य रूप से सेल्यूलोज से बनी होती है, जो संरचनात्मक ताकत प्रदान करती है । कोशिका भित्ति एक कठोर (निर्जीव) होती है

पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति पादप कोशिका को निश्चित आकार प्रदान करती है । जन्तु कोशिकाओं में कोशिका भित्ति का अभाव होता है । पादपों में यह सेल्यूलोज से निर्मित होती है । यह मध्य पटलिका , प्राथमिक भित्ति , द्वितीयक भित्ति व तृतीय भित्ति में विभेदित होती है । मध्य पटलिका का निर्माण कोशिका विभाजन के दौरान होता है तथा यह कैल्शियम व मैग्नीशियम पैक्टेट की बनी होती है ।

( 2 ) कोशिका झिल्ली ( (Cell membrane or Plasma Membrane) ) :

यह जन्तु का सबसे बाहरी आवरण है ।

संरचनात्मक रूप से, यह एक पतली, लचीली और अर्ध- पारगम्य या चुनिंदा पारगम्य झिल्ली है। कोशिका द्रव्य के भीतर साइटोप्लाज्म और न्यूक्लियस संलग्न होते हैं ।

पशु कोशिकाएं, पौधों की कोशिकाएं, प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं और कवक कोशिकाए में कोशिका झिल्ली होती है, जो वायररा को छोड़कर उनके बाहरी आवरण के रूप में होती है जो कोशिका झिल्ली रो रहित होती हैं।

इसका प्रमुख कार्य कोशिका को आकार प्रदान करके उसे समर्थन प्रदान करना है

कोशिका झिल्ली को सर्वप्रथम नेगली व क्रेमर ने देखा व प्लोव ने इसे जीवद्रव्य कला का नाम दिया । कोशिका की सामग्री को उसके बाहरी वातावरण से अलग करना, कोशिका झिल्ली लाइपोप्रोटीन ( लिपिड + प्रोटीन ) से निर्मित होती है । जीवद्रव्य कला का इकाई कला मॉडल रॉबर्टसन ने तथा तरल मोजेक मॉडल सिंगर व निकॉलसन ने प्रस्तुत किया

( 3 ) Hsciatsut ( Mitochondria ) :

( Mitos = Thread , Chondrion granule ) माइटोकॉन्ड्रिया को सर्वप्रथम कोलीकर ने कीटों में देखा । फ्लेमिंग ने इसे फाइलिया व अल्टमान ने बायोप्लास्ट कहा । बेंडा ने इसे माइटोकॉन्ड्रिया नाम दिया । माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का शक्तिगृह ( Power house of cell ) कहा जाता है । यह दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग है । माइटोकॉन्ड्रिया में श्वसन क्रिया से संबंधित एन्जाइम पाये जाते हैं । माइटोकॉन्ड्रिया को सेमीऑटोनॉमस कोशिकांग कहा जाता है ।

कार्य – कोशिका को ATP के रूप में ऊर्जा प्रदान करना ।

( A ) माइट्रोकॉन्ड्रिया की संरचना ( बाहरी संरचना )

( B ) माइट्रोकॉन्ड्रिया का पृष्ठीय या ऊपरी दृश्य

( C ) कोशिका कला की अनुप्रस्थ काट

( D ) भाइट्रोकॉन्ड्रिया की आन्तरिक संरचना

( 4 ) गॉल्जीकाय ( Golgi Complex ) :

गॉल्जीकाय की खोज कैमेलियो गॉल्जी ने उल्लू की तंत्रिका कोशिकाओं में की । पादपों में इन्हे डिक्टियोसोम नाम से जाना जाता है । यह बहुरूपिक कोशिकांग है ।

कार्य –

( 1 ) गॉल्जीकाय का मुख्य कार्य स्त्रावण है ।

( 2 ) शुक्राणु जनन के दौरान शुक्राणु के एक्रोसोम का निर्माण करना ।

( 3 ) वसा व प्रोटीन संचय ।

( 5 ) अंतः प्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic Reticulum )

अंतः प्रदव्यी जालिका की खोज पोर्टर द्वारा की गई । यह दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग है ।

यह दो प्रकार की होती हैं –

चिकनी अंत : प्रद्रव्यी जालिका ( SER ) व

खुरदरी अन्तःप्रद्रव्यी जालिका ( RER ) – राइबोसोम युक्त

कार्य-

कोशिका कंकाल बनाकर उसे निश्चित आकृति व आकार प्रदान करना ।

( 6 ) लाइसोसोम ( Lysosome ) :

इसकी खोज क्रिस्टियन डी डुवे द्वारा की गई । इसे आत्मघाती थैली ( Suicidal Bag ) भी कहते हैं क्योंकि इसमें उपस्थित अपघटनीय प्रकृति के एंजाइम जब बाहर आते है तो उसी कोशिका के कोशिकांगों का पाचन कर देते हैं , जिससे कोशिका नष्ट हो जाती है ।

कार्य –

( i ) फेगोसाइटोसिस व पिनोसाइटोसिस द्वारा बाह्य पदार्थों का पाचन ।

(ii): कोशिकीय पदार्थों का पाचन ।

( iii ) स्वलयन रोग ग्रस्त कोशिका को नष्ट करना ।

( 7 ) राइबोसोम ( Ribosome ) :

पादपों में राइबोसोम की खोज रोबिन्सन व ब्राउन ने सेम की जड़ों में की तथा जन्तु कोशिका में इन्हें पैलाडे ने खोजा । प्रोकेरियोटिक कोशिका में यह 70s तथा यूकरियोटिक कोशिका में यह 80s प्रकार के होते हैं । इसे ” प्रोटीन फैक्दी ” तथा ” कोशिका का इंजिन ” भी कहा जाता है ।

कार्य प्रोटीन का संश्लेषण करना ।

( 8 ) लवक ( Plastid ) :

केवल पादप कोशिका में उपस्थित , जन्तु कोशिका में अनुपस्थित । अपवाद स्वरूप यूग्लीना में पाया जाता है ।

लवक को खोज ‘ हेकल ‘ ने की । A.F.W. शिम्पर ने इन्हें लवक नाम दिया ।

रंग के आधार पर लवक तीन प्रकार के होते है । अ

1. लवक ( ल्यूकोप्लास्ट )

2. वर्णी लवक ( क्रोमोप्लास्ट )

3. हरित लवक ( क्लोरोप्लास्ट )

( i) अवर्णीलवक – वर्णक विहीन , प्रमुख कार्य भोजन संग्रह करना । स्टार्च का संग्रह करने वाले एमाइलोप्लास्ट , वसा का संचय करने वाले इलियोप्लास्ट , प्रोटीन का संचय करने वाले एल्यूरोप्लास्ट या प्रोटीनोप्लास्ट कहलाते हैं ।

( ii ) वर्णीलवक इनमें पर्णहरित को छोड़कर अन्य रंग जैसे लाल , नारंगी रंग के कैरोटीन तथा पीले रंग के जैन्थोफिल वर्णक होते हैं । इनमें प्रकाश संश्लेषण नहीं होता है ।

( iii ) हरित लवक ( Chloroplast ) : ये पर्ण हरित युक्त हरे रंग के लवक हैं जो प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं । क्लेमाइडोमोनास में प्यालेनुमा , स्पाइरोगायरा में सर्पिल रिबन समान , यूलोथिक्स में मेखलाकार व जिग्नीमा में ताराकार हरित लवक पाया जाता है । हरित लवक के अन्दर का तरलभाग स्ट्रोमा कहलाता है । हरित लवक के स्ट्रोमा भाग में अप्रकाशिक अभिक्रिया जबकि ग्रेनाभाग में प्रकाशिक अभिक्रिया ( Hill reaction ) होती है । हरित लवक में DNA पाये जाने के कारण यह भी माइटोकॉन्ड्रियाँ के समान Semiautonomous कोशिकांग है । हरितलवक के समस्त DNA को एनास्टोम ( Plastome ) कहते हैं ।

कार्य

( 1 ) प्रकाश संश्लेषण की क्रिया विधि द्वारा कार्बोहाइड्रेट के रूप में मौज्य पदार्थों का निर्माण होता है ।

( 9 ) केंद्रक ( Nucleus ) :

( Controlling Centre of Cell ) : केन्द्रक की खोज राबर्ट ब्राउन ने आर्किड पादप की कोशिकाओं में की ।

केन्द्रक का अध्ययन केरियोलोजी कहलाता है ।

न्यूक्लियस की खोज रॉबर्ट ब्राउन (Robert brown) ने 1831 में की थी।

  • यह कोशिका के एक प्रमुख नियंत्रण केंद्र के रूप में कार्य करता है
  • यह आम तौर पर गोलाकार या अण्डाकार आकार में होता है
  • कोशिका के केंद्र में स्थित होता है । और इसे कोशिका का मस्तिष्क भी कहा जाता है । कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) साइटोप्लाज्म कोशिका में भरी हुई चिपचिपी प्रकृति का द्रव जैसा पदार्थ है ।
  • यूकेरियोटिक कोशिका में, इसे कोशिका झिल्ली और परमाणु लिफाफे के बीच मौजूद कोशिका के हिस्से के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। प्रोटोप्लाज्म यह 1839 में पर्किनजे द्वारा दिया गया एक शब्द है, जो एक सेल की जीवित सामग्री है जो एक प्लाज्मा झिल्ली से घिरा हुआ है । यह मूल रूप से न्यूक्लिक एसिड, प्रोटीन, लिपिड और पॉलीसेकेराइड जैसे छोटे अणुओं के मिश्रण से बना है ।
  • यूकेरियोट्स में, कोशिका नाभिक के आसपास के प्रोटोप्लाज्म को साइटोप्लाज्म के रूप में और नाभिक के अंदर नाभिक के रूप में जाना जाता है। जबकि, प्रोकैरियोट्स में प्लाज्मा झिल्ली के अंदर की सामग्री बैक्टीरिया साइटोप्लाज्म है।
  • साइटोसोल (Cytosol) साइटोसोल कोशिकाओं के अंदर पाया जाने वाला साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स (तरल) है । सेल ऑर्गेनेल (Cell Organelles) प्रत्येक सेल के भीतर कुछ विशिष्ट घटक होते हैं, जिन्हें सेल ऑर्गेनेल के रूप में जाना जाता है। सेल संगठन विशेष कार्य करते हैं ।

स्तनधारियों की परिपक्व RBC एवं पादपों की परिपक्व चालनी नलिका को छोड़कर प्रायः सभी जीवित कोशिकाओं में केन्द्रक पाया जाता है ।

प्रोकेरियोटिक कोशिका में यह अस्पष्ट व नग्न डीएनए के रूप में होता है जिसे न्यूक्लिऑइड या जीनोफोर कहते हैं ।

केन्द्रक का आकार गुणसूत्रों की संख्या व कोशिका द्रव्य की मात्रा पर निर्भर करता है । प्रायः एक कोशिका में एक ही केन्द्रक होता है ।

बहुकेन्द्रकी जन्तु कोशिका सिनसियम ( Syncytion ) व वनस्पति कोशिका संकोशिकी कहलाती है ।

केन्द्रक दोहरी झिल्ली से आवरित कोशिकांग है जिसके 4 भाग होते हैं केन्द्रक झिल्ली , केन्द्रिका , केन्द्रक द्रव्य , क्रोमेटिन पदार्थ ।

कार्य कोशिका कार्यों पर नियंत्रण ।

न्यूक्लिक अम्ल ( Nucleic Acid ) :

न्यूक्लिक अम्ल दो प्रकार के होते हैं

( 1 ) DNA

( 2 ) RNA

( 1 ) डी एन ए -डी ऑक्सी राइबोस न्यूक्लिक अम्ल ( Deoxy -ribos nucleic Acid ( DNA ) : aicea a fhich द्वारा 1953 में DNA की संरचना का अध्ययन किया गया । इस कार्य हेतु इन्हें वर्ष 1962 में नोबेल पुरस्कार दिया गया । वॉटसन व क्रिक द्वारा दिया गया मॉडल द्वि – कुण्डलीय ( Double Helical ) मॉडल कहलाता है ।

इनके द्वारा दिये गये DNA प्रतिरूप को B – DNA कहते हैं ।

इस मॉडल के अनुसार DNA का व्यास 20A होता है तथा क्षारकों युग्मों में परस्पर दूरी 3.4A होती है ।

एक कुण्डलन की लम्बाई 34A होती है ।

एक कुण्डलन में नाइट्रोजनी क्षारक की संख्या 10 होती है ।

DNA में पेन्टोज शर्करा ( डी ऑक्सी राइबोस ) , फॉस्फोरिक अम्ल , नाइट्रोजन – क्षार एडीनिन ( A ) , थायमीन ( T ) , साइटोसिन ( C ) , तथा गुआनीन ( G ) पाये जाते हैं । एडिनीन ( A ) , थायमीन ( T ) के साथ व साइटोसीन ( C ) गुआनीन ( G ) के साथ बंध बनाता 1 ( A = T , C = G ) DNA की पुनरावृत्ति अर्ध संरक्षी ( Semiconservative ) विधि द्वारा होती है ।

कार्य 1 . कोशिका में होने वाली सभी रासायनिक क्रियाओं पर नियंत्रण व उनका नियमन करना ।

2 . आनुवांशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले लाना ।

कार्य – ( 2 ) RNA ( राइबोस न्यूक्लिक अम्ल ) – यह मुख्यतः कोशिका द्रव्य व केन्द्रिका ( Nucleolus ) में पाया जाता है ।

इसके अतिरिक्त यह माइटोकॉन्ड्रिया व हरित लवक में भी पाया जाता है ।

RNA एक रज्जुकीय ( Single Stranded ) होता है । अपवाद रिओ वायरस , वाउण्ड ट्यूमर वायरस में द्वि रज्जुकीय RNA आनुवांशिक व अआनुवांशिक प्रकार ( t – RNA , T RNA , Hn – RNA , Sn – RNA ) का होता है । RNA में राइबोस शर्करा पायी जाती है ।

RNA में चार नाइट्रोजन क्षार पाई जाती है

एडीनीन ( A ) ,

यूरेसिल ( U ) ,

साइटोसिन ( C ) ,

गुआनीन ( G )

RNA का मुख्य कार्य प्रोटीन संश्लेषण है ।

गुणसूत्र ( Chromosomes ) :

गुणसूत्र की खोज स्ट्रॉसबर्गर ने की तथा गुणसूत्र नाम वाल्डेयर द्वारा दिया गया । कोशिका विभाजन की अन्तरावस्था ( Interphase ) में क्रोमेटिन पदार्थ से बनने वाली धागेनुमा संरचना को गुणसूत्र कहते हैं । जन्तुओं तथा उच्च वर्ग के पौधों की कायिक कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित ( 2n ) होती है , जबकि युग्मजो में इसकी संख्या अगुणित ( n ) होती है ।

अगुणित गुणसूत्र संख्या को जीनोम ( genome ) कहते हैं ।

जन्तुओं में गुणसूत्र की न्यूनतम संख्या एस्केरिस मैगालोसिफैला ( 02 )

जन्तुओं में गुणसूत्र की सर्वाधिक संख्या – ओलोकैन्था ( 1600 )

पादपों में गुणसूत्र की न्यूनतम संख्या हैपलोपैपस ग्रोसिलिस ( 04 )

पादपों में गुणसूत्र की सर्वाधिक संख्या ओफियोग्लोसस रेटिकुलेटम ( 1260 बहुगुणित )

गुणसूत्र की आकृति का अध्ययन मध्यावस्था ( Metaphase ) में किया जाता है । ये V , J अथवा L एवं छड़ की आकृति के होते हैं

गुणसूत्र मध्यकेन्द्री ( Metacentric ) , ( Submetacentric ) , उपअन्तकेन्द्री ( Acrocentric ) व अन्तकेन्द्री ( Telocentric ) प्रकार के होते हैं

सबसे बड़े गुणसूत्र ट्रिलियम ग्रान्डीफ्लोरम नामक पौधे की कोशिकाओं में पाये जाते हैं ।

सबसे छोटे गुणसूत्र कवकों व पक्षियों में पाये जाते हैं ।

प्रत्येक गुणसूत्र में अर्धगुणसूत्र ( Chromatid ) , क्रोमोमीयर ( Chromomere ) , सेन्ट्रोमीयर ( Centromere ) , द्वितीयक संकीर्णन ( Secondary Constrction ) , सेटेलाइट ( Satellite ) तथा टीलोमीयर ( Telomere ) भाग पाये जाते हैं । लैम्पबुश गुणसूत्र ये कशेरूकियों की अण्डकोशिकाओं के केन्द्रक में पाये जाते हैं । इनकी खोज रूकर्ट ने की ।

पॉलीटीन गुणसूत्र ये गुणसूत्र डिप्टीरा कीटों जैसे मच्छर , ड्रोसोफिला की लार ग्रंथियों में पाये जाते हैं ,

इन्हें महागुणसूत्र ( Giant Chromosome ) भी कहते हैं । इनकी खोज बालबियानी ने की ।

जीन ( Gene ) :

जीन को मेन्डल ने कारक ( factor ) कहा ।

मेन्डल के कारकों को जीन नाम जोहेन्सन ने दिया । जीन गुणसूत्रों पर उपस्थित सूक्ष्म संरचना है

जीन आनुवांशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचाते हैं ।

होमो सेपियन्स ( मानव ) में जीन की संख्या 30,000 होती है ।

कोशिका विभाजन ( Cell Division ) :

एक मातृकोशिका से संतति कोशिकाओं के बनने को कोशिका विभाजन कहते हैं । कोशिका विभाजन के फलस्वरूप जीवधारियों के शरीर में वृद्धि होती है ।

वृद्धि के अतिरिक्त अलैंगिक ( Asexual ) व लैंगिक ( Sexual ) जनन के समय भी कोशिकायें विभाजित होती है ।

कोशिका विभाजन के बारे में सर्वप्रथम रुडॉल्फ विों ने बताया ।

इनके अनुसार नई कोशिकाओं की उत्पत्ति पूर्ववर्ती कोशिकाओं से होती है । कोशिका विभाजन के निम्न प्रकार है ( 1 )

(1) असूत्री विभाजन ( Amitosis ) :

यह कोशिका विभाजन की सबसे सरल विधि है । इसमें केन्द्रक का विभाजन विभिन्न अवस्थाओं के पश्चात न होकर सीधे ही होता है । इसमें तुर्क तन्तुओं का निर्माण नहीं होता है । केन्द्रक में संकीर्णन होने पर यह मुग्दर के आकार का हो जाता है तथा विभाजित होकर दो संतति केन्द्रक बनाता है । कोशिका द्रव्य भी दो भागों में विभाजित हो जाता है तथा प्रत्येक भाग में एक संतति केन्द्रक पहुँचता है । उदाहरण प्रौकेरियोटिक जीवों में , कुछ शैवाल व कवकों में , प्रोटोजोआ समूह के जीवों में । (

2 ) सूत्री विभाजन ( Mitosis ) :

कोशिका विभाजन की वह अवस्था जिसमें गुणसूत्रों का द्विगुणन होता है और तत्पश्चात् ये संतति कोशिकाओं में बराबर – बराबर बँट जाते है उसे सूत्री विभाजन कहते हैं ।

सूत्री विभाजन

पूर्वावस्था ( Prophase ) ,

मध्यावस्था ( Metaphase ) ,

पश्चावस्था ( Anaphase ) ,

अंत्यावस्था ( Telophase ) में विभाजित रहता है ।

पूर्वावस्था में क्रोमेटिन पदार्थ पतले महीन धागों में रूपान्तरित हो जाता है साथ ही पूर्वावस्था के अन्त तक केन्द्रक झिल्ली व केन्द्रिका लुप्त हो जाती है । मध्यावस्था में मेटाफेज प्लेट का निर्माण होता है । मध्यावस्था में गुणसूत्र सर्वाधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं ।

पश्चावस्था ( Anaphase ) – यह सूत्री विभाजन की सबसे छोटी अवस्था है । इसमें गुणसूत्र की गति विपरीत ध्रुवों की ओर होने लगती है । अंत्यावस्था ( Telophase ) : यह पूर्वावस्था के ठीक विपरीत की अवस्था होती है । महत्व जीवों की वृद्धि में सहायक , जीर्ण व क्षतिग्रस्त कोशिकाओं का नवकोशिकाओं द्वारा प्रतिस्थापन ।

( 3 ) अर्धसूत्री विभाजन ( Meiosis ) :

ऐसा कोशिका विभाजन जिसमें बनने वाली पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्र की संख्या मातृकोशिकाओं की आधी रह जाती है , अर्धसूत्री विभाजन कहलाता है ।

इस विभाजन के पश्चात एक कोशिका से चार पुत्री कोशिकायें बनती है ।

मातृकोशिकाओं में गुणसूत्र संख्या द्विगुणित ( 2n ) तथा पुत्री कोशिकाओं में अगुणित ( n ) होती है ।

सर्वप्रथम स्ट्रॉसबर्गर ने पादपों में इसे खोजा तथा फारमर व मूरे ने इसे मियोसिस नाम दिया ।

अर्धसूत्री विभाजन की पूर्वावस्था पांच भागों में बँटी होती है – लैप्रोटीन , जाइगोटीन , पैकीटीन , डिप्लोटीन , डायकाइनेसिस । जाइगोटिन अवस्था में सूत्रयुग्मन ( Synapsis ) की क्रिया होती है ।

पेकीटीन अवस्था में गुणसूत्र चतुष्क ( Tetrad ) बनाते है तथा क्रोसिंग ओवर की क्रिया होती है ,

डिप्लोटीन अवस्था में काइज्मेटा ( Chiasmata ) दिखाई देते हैं । महत्व अर्धसूत्री विभाजन लैंगिक जनन करने वाले प्राणियों में गुणसूत्रों की संख्या को निश्चित व अपरिवर्तित बनाए रखता है ।

कोशिका चक्र

सेल चक्र 1953 में हावर्ड और पेले द्वारा पेश किया गया था। इसे उन घटनाओं की श्रृंखला के रूप में परिभाषित किया गया है जिनके द्वारा एक सेल अपने जीनोम की नकल करता है और अन्य सेल घटकों को संश्लेषित करता है और फिर दो कोशिकाओं में विभाजित होता है । एक विशेष वक्तव्य “ओम्निस सेलुला ई सेलुला” में. इसका अर्थ है प्रत्येक कोशिका एक कोशिका से उत्पन्न होती है।’ यह बताता है कि जीवन की निरंतरता सेल प्रजनन या कोशिका विभाजन पर निर्भर करती है।

कोशिका चक्र के चरण

(i) अंतर्ग्रहण ( अविभाजित चरण)

(ii) एम चरण या मिटोसिस चरण (विभाजित चरण)

अंतर्ग्रहण (अविभाजित चरण) – (Interphase)

यह दो क्रमिक M चरणों के बीच के चरण का प्रतिनिधित्व करता है । यह सेल चक्र की पूरी अवधि के 95% से अधिक के लिए बनता है या रहता है। हालांकि इसे आराम चरण कहा जाता है,

लेकिन यह वह समय है जिसके दौरान नवगठित कोशिकाएं खुद को विभाजन के लिए तैयार करती हैं, अर्थात क्रमबद्ध तरीके से विकास और डीएनए प्रतिकृति दोनों से गुजरना पड़ता है।

एम चरण (विभाजित चरण) (M-Phase)

यह कोशिका विभाजन का चरण है जिसमें पहले से ही नकल किए गए गुणसूत्रों को दो बेटी नाभिकों में वितरित किया जाता है । यह नाभिकीय विभाग ( करियोकिनेशिरा) से शुरू होता है और साइटोकाइनेशिरा के बाद रामाप्त हो जाता है ।

अन्तः सूत्री विभाजन गुणसूत्रों और नाभिक विभाजन का समय है और कोशिका विभाजन कोशिका द्रव्य का विभाजन है ।

इस चरण के दौरान कोशिका के सभी घटक कोशिका विभाजन के लिए पुनर्गठित होते हैं । चूंकि, माता-पिता और पूर्वज कोशिकाओं दोनों में गुणसूत्रों की संख्या समान रहती है, इसलिए इसे विषुवत विभाजन के रूप में भी जाना जाता है ।

कोशिका विभाजन

कोशिका विभाजन की अवधारणा सर्वप्रथम एक वैज्ञानिक नागेली द्वारा प्रतिपादित की गई थी और फ्लेमिंग द्वारा देखी गई थी

इसका पूर्ण व्यापक और अनन्य अध्ययन 1920 में बेलार द्वारा किया गया था। इसे सेल प्रोडक्शन भी कहा जाता है ।

कोशिका विभाजन आमतौर पर निम्नलिखित तीन तरीकों से होता है .

1. अमोसिस

2. माइटोसिस

3. अर्धसूत्रीविभाजन

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