प्रस्तावना

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उद्देश्य प्रस्ताव के आधार पर संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार बी एन राव द्वारा प्रस्तावना का प्रारूप तैयार किया गया था । प्रख्यात संवैधानिक विशेषज्ञ एन ए पालकीवाला ने प्रस्तावना को संविधान का परिपत्र कहा है ।

13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्तावना को संसद के सामने रखा

जिसे 22 जनवरी 1947 को पास कर दिया गया और इसी दिन से उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तावना में बदल गया

विश्व के सभी देशों के संविधान में प्रस्तावना संविधान के बाहर लगी हुई होती है

फ्रांस विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जिस के संविधान में प्रस्तावना मध्य में लगी हुई है

किसी भी देश की प्रस्तावना उस देश के आदर्श लक्ष्य व प्रकृति  को दर्शाता है

प्रस्तावना का विचार भारत में अमेरिका से ग्रहण किया गया है

प्रस्तावना की भाषा भारत में ऑस्ट्रेलिया से ग्रहण की गई है

प्रस्तावना से संबंधित निम्न कथ्न –

पालकी वाला नामक व्यक्ति ने प्रस्तावना को परिचय पत्र कहा

केएन मुंशी ने प्रस्तावना को राजनीतिक कुंडली में जन्म कुंडली कहा

ठाकुर भार्गवदास ने प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा

जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्तावना को संविधान का हृदय कहा

प्रस्तावना संविधान का भाग है या नहीं इसको लेकर दो विवाद हुए

बेरुबारी विवाद 1960

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि प्रस्तावना संविधान का भाग है या नहीं तब सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दिया की प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है अतः प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है

तो उसमें संशोधन भी नहीं किया जा सकता है

केसवानंद भारती विवाद 1973

विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा प्रस्तावना भारतीय संविधान का अंग है

अतः प्रस्तावना जब संविधान का अंग है तो उसमें संशोधन भी किया जा सकता है

भारत की प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन हुआ है 1976

1975 से 1977 तक इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया रखा था इसी दौरान इंदिरा गांधी 42 वा संविधान संशोधन 1976 में करवा कर प्रस्ताव में 3 नए शब्द जोड़े

समाजवादी

पंथनिरपेक्ष

अखंडता

भारतीय संविधान के मूल कार्यों को सर्वप्रथम 1973 में परिभाषित किया गया है

भारतीय संविधान के सर्वश्रेष्ठ शक्ति जनता को प्रदान की गई है

भारत की प्रस्तावना में पांच प्रकार की स्वतंत्रता ओं का वर्णन किया गया है विचार अभिव्यक्ति धर्म विश्वास उपासना

भारत की प्रस्तावना में तीनों न्याय योग का वर्णन भी किया गया है आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय राजनीतिक न्याय

भारत की प्रस्तावना में 2 समानता ओं का वर्णन भी किया गया है अवसर की समानता प्रतिष्ठा की समानता

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