Maratha Empire मराठा साम्राज्य का इतिहास
मराठा राजवंश के प्रमुख शासक

शिवाजी:
शिवाजी का जन्म शिवनेर में 19 फ़रवरी 1630 को हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी (निजाम शाह और आदिल शाह के तहत कार्य किया) तथा मां का नाम जीजाबाई थीं। उन्हें अपने पिता से पूना की जागीर विरासत में मिली। अपने अभिभावक, दादाजी कोंडादेव की मृत्यु के बाद, सन् 1647 में जागीर का स्वतंत्र प्रभार ग्रहण किया।
18 वर्ष की उम्र में उन्होंने तोरण को विजीत किया तथा रायगढ़ और प्रतापगढ़ में किलों का निर्माण किया।
शिवाजी को दंडित करने के लिए, आदिल शाह ने अफजल खान को प्रतिनियुक्त किया, किंतु उन्होंने 1659 में अफजल की हत्या कर दी। इसके बाद, 1660 में शिवाजी की बढ़ती शक्ति को दबाने के लिए, औरंगजेब ने शाइस्ता खान को प्रतिनियुक्त किया। युद्ध में शिवाजी को पूना खोना पड़ा और कई पराजयों के बाद, एक दिन उन्होंने शाइस्ता के सैन्य शिविर पर आक्रमण कर सूरत, और फिर अहमदनगर को लूट लिया। इसके बाद, शिवाजी को हराने के लिए, औरंगजेब ने जयसिंह को नियुक्त किया। जयसिंह, शिवाजी को पुरन्धर के किले में घेरने में सफल रहा। परिणामत: शिवाजी को पुरन्धर की संधि (1665) करनी पड़ी, जिसमें शिवाजी को अपने 23 किले मुगलों को देने पड़े तथा उन्हें कैद कर लिया गया।
1666 में शिवाजी कैद से भाग गए। 4 वर्षों के सैन्य अभियानों के पश्चात्, शिवाजी ने अपने सभी किले तथा क्षेत्रों को वापस हासिल कर लिया। 1674 में, शिवाजी ने रायगढ़ में अपना राजाभिषेक कराया तथा ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की। 1680 में शिवाजी की मृत्यु हो गई।
शिवाजी ने अपने शासनकाल में एक प्रभावी नागरिक और सैन्य प्रशासन को स्थापित किया था। उन्होंने अपने राज्य में सभी धर्मों और संप्रदायों को समायोजित करने के लिए धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई।
संभाजी: –
शिवाजी की मृत्यु के बादा एक निर्वात की स्थिति उत्पन्न हो गई। संभाजी (शिवाजी के बड़े पुत्र) ने उत्तराधिकार के युद्ध में अपने छोटे भाई को हरा दिया। 1681 में, संभाजी का राजाभिषेक हुआ तथा उन्होंने अपने पिता की विस्तारवादी नीतियों का अनुसरण किया। संभाजी ने पहले पुर्तगालियों को और फिर मैसूर के चिक्का देव राय को पराजित किया।
1689 में, संभाजी ने संगमेश्वर में अपने कमांडरो की एक रणनीतिक बैठक बुलाई, जिसका उद्देश्य मुगल सेना पर अंतिम आक्रमण करने से संबंधित सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श करना था। किंतु एक योजनाबद्ध कार्यवाही के तहत, गंगोजी शिर्के तथा मुबारक ख़ां (औरंगजेब का कमांडर) ने संगमेश्वर पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में संभाजी को बंदी बना लिया गया। शंभाजी तथा उनके सलाहकार, कवि कलश, को बहादुरगढ़ ले जाया गया, जहां मुगलों के खिलाफ विद्रोह के आरोप में उन्हें मृत्युदंड दे दिया गया।
राजाराम:
राजाराम, रायगढ़ के कुछ मंत्रियों की सहायता से सिंहासन पर आसीन होने में सफल रहा। मुगलों के आक्रमण के बाद, जिसमें संभाजी की पत्नी (यशुबाई) तथा उसके पुत्र (शाहू) को कैद कर लिया गया, राजाराम रायगढ़ से जिंजी भाग गया था।
राजाराम ने अपने शासनकाल में एक नए पद ‘प्रतिनिधि’ की स्थापना की। पदक्रम में पेशवा का स्थान प्रतिनिधि से नीचे था। 1700 में राजाराम की मृत्यु हो गई।
ताराबाई: –
राजाराम की मृत्यु के पश्चात् उसका अल्प-वयस्क पुत्र शिवाजी-द्वितीय, अपनी मां ताराबाई के संरक्षण में शासक बना।
शाहूजी: –
शाहूजी (संभाजी के पुत्र) 1707 में, मुगल बादशाह बहादुर शाह द्वारा कैद से आज़ाद कर दिया गया। किंतु उनकी माता
को मुग़लों ने बंधक बनाकर रखा, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि शाहूजी, मुग़लों की सभी शर्तों का अनुपालन करें। अजाद होने के बाद, शाहूजी ने तुरंत मराठों के सिंहासन का दावा किया। उन्होंने अपनी चाची ताराबाई और उनके पुत्र (शिवाजी-द्वितीय) को चुनौती दी। शाहूजी ने खेड़ की लड़ाई में उन्हें परास्त कर सतारा पर कब्जा कर लिया।
– शाहूजी की विजय ने मराठों को दो भागो में विभक्त करा दिया – शाहूजी के अधीन सतारा (उत्तरी भाग) तथा शिवाजीद्वितीय के अधीन कोल्हापुर (दक्षिणी भाग)। हालांकि, शाहूजी अंत में मराठों के छत्रपति के रूप में स्वीकार कर लिए गए। शाहूजी ने बालाजी विश्वनाथ को सेनाकर्ते, और बाद में पेशवा नियुक्त किया।
1749 में शाहूजी की मृत्यु हो गई और उनकी वसीयत के अनुसार, मराठों के राज्य का कार्यभार पेशवाओं के हाथों में आ गया।
राजाराम-द्वितीय: –
शिवाजी-द्वितीय का कोई पुत्र नहीं था। ताराबाई की सिफारिश पर, उसके तथाकथित बेटे राजाराम-द्वितीय को छत्रपति
बनाया गया। 1750 में, इसने पेशवा बालाजी विश्वनाथ से संगोला की संधि की, जिसके अनुसार पेशवा मराठा संघ के वास्तविक नेता बन गए तथा छत्रपति नाममात्र का प्रधान रह गया।
पेशवा मराठा के प्रमुख शासक
बालाजी विश्वनाथ: –
बालाजी विश्वनाथा ने एक राजस्व अधिकारी के रूप में शुरुआत की। शाहूजी ने 1708 में सेनाकर्ते तथा 1713 में पेशवा
की उपाधि प्रदान की। इसने पेशवाओ इतना महत्वपूर्ण और शक्तिशाली बना दिया कि पेशवाओ का पद वंशानुगत बन गया।
इसने शाहूजी की निर्णायक विजय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके तहत इसने लगभग सभी मराठा सरदारों
को शाहूजी के पक्ष में झुका दिया था। 1719 में इसने मुगलों से एक संधि की, जिसके द्वारा मुगल सम्राट (फर्रुखशियर) ने शाहूजी को स्वराज्य के राजा के रूप में मान्यता दे दी। रिचर्ड टेंपल ने इसे मराठों की मैग्नाकार्टा कहा है।
बाजीराव-द्वितीय: –
बालाजी विश्वनाथ के बाद, उसका पुत्र बाजीराव पेशवा बना। यह शिवाजी के बाद गुरिल्ला युद्ध का सबसे बड़ा
प्रतिपाद था तथा इसके अधीन मराठा शक्ति अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई।
इसी के शासनकाल में मराठो के गायकवाड़ (बरौड़ा), होल्कर (इंदौर), सिंधिया (ग्वालियर) तथा भोसले (नागपुर)
परिवारों ने प्रमुखता प्राप्त की। पेशवा (पूना) से शासन करते रहे।
1772 में सिंधियो और जंजीरो को मुख्य भूमि से खदेड़ने के बाद, 1773 में पुर्तगालियो से बेसिन और शालसेट विजीत
कर लिया। उसने निज़ाम-उल-मालिक को परास्त कर, दुरई सराय की संधि की, जिसके तहत बाजीराव को मालवा तथा बुंदेलखंड प्राप्त हुए। मराठों को भारत की सर्वोच्च शक्ति बनाने तथा मुगल साम्राज्य को कमजोर करने के लिए, उसने कई सफल अभियानों का नेतृत्व किया।
बालाजी बाजीराव (नाना साहेब): –
शाहजी की वसीयत (1749) तथा संगोला संधि (1750) के अनुसार, पेशवा मराठों के वास्तविक शासक बन गये। इसके शासनकाल में, भोंसलो द्वारा बंगाल पर बार-बार आक्रमण किए गए, जिससे परेशान होकर बंगाल के नवाब अलीवर्दी खां में बाजीराव से एक संधि की, जिसके तहत उसे अपने साम्राज्य का एक बड़ा हिस्सा मराठाओं को देना पड़ा तथा सालाना 1.2 लाख चौथ के रूप में देने पड़े। राजपूताना भी इस समय के दौरान मराठा शासन के अधीन आ गए।
पानीपत (14 जनवरी 1761) के तीसरे युद्ध में, मराठों की अहमद शाह अब्दाली (अफगान शासक) से पराजय हुई और विश्वास राव (नाना साहेब के पुत्र) की मौत हो गई। इस युद्ध में अहमद शाह को दोआब के रोहिल्ला अफगानों तथा शुजा-उद-दौला (अवध का नवाब) ने समर्थन दिया था। 1761 में नाना साहेब मृत्यु हो गई।
माधव राव: –
मराठा पेशवाओ में श्रेष्ठ था। इसी के शासनकाल में, मराठों ने पानीपत के युद्ध में खोई अपनी प्रतिष्ठता को पुन: प्राप्त किया। 1772 में इसकी (27 वर्ष की आयु) मृत्यु हो गई। इसकी मृत्यु, मराठा साम्राज्य के लिए सबसे घातक झटका मानी जाती है तथा इसके बाद से मराठों की शक्ति कमजोर पड़ने लगी।
इसने हैदराबाद निजाम और मैसूर के हैदर अली को चौथ देने के लिए बाध्य किया था।
नारायण राव: –
1772 में, माधव राव के बाद, नारायण राव पेशवा बना। उसके चाचा रघुनाथ राव (रघोवा) ने, 1773 में इसकी हत्या कर दी।
सवाई माधव राव:
जब, नारायण राव के मरणोपरान्त उसका पुत्र (सवाई माधव राव) उत्पन्न हुआ, तो रघोवा हताश हो गया। दूसरी तरफ हत्या के बाद मराठा सरदार नाना फड़नवीस रघोवा के विरुद्ध हो गए। फड़नवीस के नेतृत्व में मराठा सरदारो द्वारा मराठा राज्य की देखभाल के लिए भाई कॉसिल बनाई गई। इस चुनौती का सामना न कर पाने के कारण रघुनाथ राव ने बंबई जाकर फड़नवीस के विरुद्ध अंग्रेजो से मदद मांगी। इस घटना ने प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध की नींव रख दी।
• 1794 में सिंधिया की मृत्यु, 1795 में सवाई माधव नारायणराव की मृत्यु, 1800 में नाना फड़नवीस की मृत्यु तथा सवाई माधव की जगह रघुनाथ राव के अत्यंत नालायक बेटे बाजीराव-द्वितीय द्वारा लेने पर मराठो की शक्ति का अंत होने लगा।