भाग 3 अनुच्छेद 12 से 35 प्रेरणा अमेरिका से मूल अधिकारों का जनक देश ब्रिटेन को माना जाता है भारतीय संविधान के भाग 3 को मैग्नाकार्टा कहा जाता है यह विधायिका और कार्यपालिका की सत्य को मर्यादित कहते हैं संविधान के प्रारंभ में कुल 7 मूल अधिकार थे अनुच्छेद 14 से 18 समता का अधिकार […]
उद्देश्य प्रस्ताव के आधार पर संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार बी एन राव द्वारा प्रस्तावना का प्रारूप तैयार किया गया था । प्रख्यात संवैधानिक विशेषज्ञ एन ए पालकीवाला ने प्रस्तावना को संविधान का परिपत्र कहा है । 13 दिसंबर 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्तावना को संसद के सामने रखा जिसे 22 जनवरी 1947 […]
संविधान का निर्माण भारतीय संविधान विश्व का सबसे बडा लिखित संविधान है । इसके निर्माण में 2 वर्ष , 11 माह और 18 दिन का समय लगा था । इसमें आरम्भ में 395 अनुच्छेद , 22 भाग और 8 अनुसूचियाँ थीं । संविधान का निर्माण भारतीय जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा किया गया । […]
भारत राजव्यवस्था प्रथम विष्व यु़द्ध के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल थे जो बवदेमतअंजपदम चंतजल से थे । कलीमेन्ट एटली ने 14 मार्च 1946 केा हाउस आॅफ काॅस मे एक प्रस्ताव रखा जिसके अनुसार भारत को स्वतत्रंता और संविधान सभा बनाने का प्रस्ताव पास किया गया जो प्रस्ताव कैबिनेट पिषन के रूप में सामने […]
वर्गीकरण की आवश्यकता ( Necessity of classification ) सन् 1800 तक 31 तत्वों की पहचान होचुकी थी । सन्1865 तक 63 तत्वों की पहचान होचुकी थी और आज118 तत्व ( IUPAC के अनुसार ) ज्ञातहै , हालांकि इनमे से कुछ तत्वमानव – निर्मित भी हैं ।इन सभी तत्वों को अलग – अलगयाद रखना , उनके रासायनिक एंव भौतिक गुण तथा उनसे बनने वाले यौगिकों के गुणधर्मो काअध्ययन कर पाना एकबहुत ही कठिन कार्यहै । अतः तत्वोंके वर्गीकरण की आवश्यकता महसूसहुई । वैज्ञानिकों नेकुछ गुणों के आधार परइन तत्वों को एक क्रममें व्यवस्थित करने का प्रयास किया। जिससे इन का अध्ययनसरल , सुगम व तर्कसंगत तरीकेसे किया जा सके ।इस प्रकार के वर्गीकरण सेभविष्य में खोजे जाने वाले नये तत्वों का अध्ययन भीसुव्यवस्थित तरीके से किया जासकेगा
मेंडेलीफ की आवर्त सारणी ( Mendeleef’s periodic table ) सर्वप्रथम आवर्तसारणी बनाने का श्रेय मेंडेलीफको है । उन्होंनेतत्वों को उनके बढ़तेहुए परमाणु भारो के क्रम मेंव्यवस्थित करने पर देखा किएक निश्चित अन्तराल के बाद तत्वोंके समान गुणो की पुनरावृत्ति होतीहै । उन्होनें इसेही आधार मान कर एक आवर्त्तनियम दिया – तत्वो के गुणधर्म उनकेपरमाणु भारो के आवर्ती फलनहोते है मेण्डेलीफ नेआवर्त सारणी को क्षैतिज पंक्तियोतथा ऊर्ध्वाधर स्तंभो में व्यवस्थित किया । उन्होनें ऊर्ध्वाधर स्तम्भों को वर्ग तथाक्षैतिज डी . मेंडेलीफ पंक्तियों को आवर्त कहा। सारणी में 8 वर्ग है जिन्हे 2 उपवर्गोA व B में विभाजित किया गया है । उससमय तक उत्कृष्ट गैसें( Noble gases ) ज्ञातनहीं थी , बाद में इन्हें एक नया वर्गशून्य वर्ग बनाकर सारणी में दर्शाया गया । आवर्त्त 6 बनाएगए , जिन्हें पुनः श्रेणियों में भी बाँटा गया। 1 मेण्डेलीफ ने तत्वो कोउनके बढ़ते हुए परमाणु भारो के क्रम मेंसारणी में व्यवस्थित किया । उन्होने सुनिश्चितकिया कि एक हीप्रकार के भौतिक एवंरासायनिक गुणधर्मो वाले तत्व एक ही वर्गमें आएँ ताकि तत्वों की आवर्तिता बरकराररहे । इसके लिएउन्हे कही – कहीं परमाणु भार के क्रम कोतोड़ना भी पड़ा ।जैसे आयोडीन ( I ) का परमाणु भार126.9 है इसे टेल्यूरियम ( Te ) परमाणु भार 127.6 के बाद रखागया क्योंकि इसके गुणों मे वर्ग VII केतत्वों से समानता पाईजाती है । इसी प्रकार उन्होने आवर्तसारणी में कुछ तत्वों के लिए रिक्तस्थान भी छोड़े तथाउनके गुणधर्मों के बारे मेंभविष्यवाणी भी करी ।उन्होनें एका – बोरॉन , एका – एल्यूमिनियम , एका – सिलिकॉन के लिए रिक्तस्थान छोड़ा तथा गुणो का अनुमान लगायाजो कि बाद मेंसही सिद्ध हुआ । इन्हे बादमें क्रमशः स्कैण्डियम गैलियम , जरमेनियम कहा गया । इस सारणीका निर्माण तत्वो के वर्गीकरण एवंअध्ययन में अत्यंत महत्वपूर्ण तथा उपयोगी रहा । फिरभी यह सारणी कुछतथ्यों को नहीं स्पष्टकर सकी जैसे कि कुछ स्थानोंपर परमाणुभार के बढ़ते क्रमका पालन नहीं किया गया । कुछ समान गुण वाले तत्व अलग – अलग वर्ग में तथा असमान गुण वाले तत्व एक ही वर्गमें आ गये । हाइड्रोजन को निश्चित स्थाननहीं दिया गया । समस्थानिकों को स्थान नहींदिया गया ।
गुणों में आवर्तिता ( Periodicity in properties ) आवर्तसारणी के आधार परतत्वों के कई भौतिकएवं रासायनिक गुणों को स्पष्ट कियाजाता है । यदिआवर्त सारणी में वर्ग में ऊपर से नीचे याआवर्त में बाँए से दाए जाएतो तत्वों के भौतिक एवंरासायनिक गुणों के बढ़ने याघटने का एक निश्चितक्रम दिखाई देता है । तत्वोंके गुणों में यह […]
आधुनिक आवर्त्त – सारणी ( Modern periodic table ) मैण्डलीफ ने जब आवर्त सारणी का निर्माण किया था तब परमाणु में अवपरमाणुक कणों ( e , p , n ) की व्यवस्था की जानकारी नहीं थी । अतः उन्होने परमाणु भार को मुख्य गुण माना । बीसवीं सदी के प्रारंभ में इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन व न्यूट्रॉन की जानकारी के बाद सन 1913 में हेनरी मोजले ने आवर्त सारणी को पुनः व्यवस्थित किया । उन्होनें पाया कि परमाणु भार की तुलना में परमाणु क्रमांक आवर्त सारणी में तत्वों को ज्यादा अच्छी तरह से प्रदर्शित करते है । इस प्रकार मोजले ने एक संशोधित आवर्त नियम दिया जिसके अनुसार ” तत्वो के भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्म उनके परमाणु क्रमांको के आवर्ती फलन होते है । ” इसे आधुनिक आवर्त्त – नियम कहते है । आधुनिक आवर्तसारणी में तत्वों को बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के आधार पर रखा गया है । उदासीन परमाणु में परमाणु क्रमांक अर्थात् नाभिक में उपस्थित प्रोटोन की संख्या उसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉन की कुल संख्या के बराबर होती है । अतः यह आवर्तसारणी स्वंय ही तत्वों के इलेक्ट्रानिक विन्यास का भी प्रतिनिधित्व करती है । आवर्तसारणी का यह रूप बहुत ही सरल तथा मैण्डेलीफ की आवर्त सारणी की तुलना में ज्यादा विस्तृत है । इसे आवर्तसारणी का दीर्घ या लम्बा रूप ( Extendedor long formof periodic tabe ) भी कहा जाता है इस आवर्त सारणी में क्षैतिज पंक्तियाँ आवर्त ( Period ) तथा उर्ध्वाधर स्तम्भ वर्ग ( Group ) कहलाते है । वर्गों की संख्या 18 तथा आवत्तों की संख्या 1 से 7 तक होती है । आवर्त्त मुख्य ऊर्जा स्तर n अर्थात् कोश को निरूपित करते है । प्रथम आवर्त में दो तत्व होते है । इसे अतिलघुआवर्त कहते है । द्वितीय तथा तृतीय आवर्त में 8-8 तत्व है , इन्हे लघु आवर्त कहते है । चतुर्थ व पंचम आवर्त में d कक्षक भी सम्मिलित हो जाते है । इन दोनों आवर्ता में 18-18 तत्व होते है । इन्हे दीर्घ आवर्त कहते है । छठे व सातवें आवर्त में किक्षक भी प्रारंभ हो जाते अतः इनमें 32-32 तत्व होते है । इन्हे अति दीर्घ आवत भी कहते है । हालांकि f- ब्लॉक के एक – एक प्रारूपिक तत्व को आवर्तसारणी में लिखकर दो क्षैतिज पंक्तियों में अलग से 14-14 तत्वों दर्शाया जाता है । इनमें पहली पंक्ति के तत्व लेन्थेनाइड व दूसरी पंक्ति के तत्व एक्टिनॉइड कहलाते है । इस आवर्तसारणी में यह तो स्पष्ट है कि एक ही ऊर्ध्वाधर स्तंभ अर्थात् एक ही वर्ग में तत्वों के बाह्यतम कोशों के इलेक्ट्रानिक विन्यास समान होते है । एक ही वर्ग के इन सभी तत्वों में संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या अर्थात् बाह्यतम कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉन की संख्या समान होती है । उसी वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर केवल कोशो की संख्या बढ़ती जाती है । बाह्यतम कोश में भरे गए अंतिम इलेक्ट्रॉन के आधार पर इन तत्वों को चार ब्लॉक में वर्गीकृत किया जाता है । वर्ग 1 व 2 को ब्लॉक तत्व , वर्ग 13 से 18 तक p ब्लाक तत्व , वर्ग 3 से 12 तक d ब्लाक तत्व तथा नीचे की दोनों क्षैतिज पंक्तियों को ब्लिॉक के तत्व कहा जाता है । क्षैतिज पंक्तियों में पहली पंक्ति के तत्व ( 4f श्रेणी ) लैंथेनम के बाद आते है अतः इन्हे लैन्थेनाइड कहा जाता है । दूसरी पंक्ति के तत्व ( 5f श्रेणी ) एक्टीनियम के बाद आते है अतः इन्हें एक्टिनाइड कहा जाता है । 5 ब्लॉक के तत्वों क्षारीय एंव क्षारीय मृदा घातु , p ब्लॉक के तत्वों को निरूपक तत्व या मुख्य तत्व , d- ब्लॉक के तत्वों को संक्रमण तत्व तथा f- ब्लॉक के तत्वों को अन्तः संक्रमण तत्व कहा जाता है । आवर्त आरणी में यूरेनियम के बाद के तत्वों को परायूरेनियम तत्व भी कहा जाता है । इस प्रकार इस आवर्तसारणी में बाँयी ओर विघुत धनी धात्विक तत्व तथा दाहिनी ओर विघुत ऋणी अधात्विक तत्व आ जाते है । B , Si , As , Te और At के नीचे खींची गई टेढ़ी – मेढ़ी सीढ़ीनुमा रेखा धातु व अधातु की सीमा बनाती है । इन तत्वों को उपधातु भी कहते है ।
उद्गम नाग पहाड़ियां अजमेर से साबरमती नदी के रूम में गोविंदगढ़ अजमेर में पुष्कर से आने वाली सरस्वती के लिए जिले के बाद लूनी नदी बनती हैलूनी नदी अजमेर नागौर जोधपुर पाली जालौर बाड़मेर जिले में प्रवाहित होती हैबालोतरा बाड़मेर लूणी नदी का पानी मीठा है इसके बाद पानी खारा हो जाता हैलूनी नदी कच्छ […]
1. धात्विक एवं अधात्विक गुण ( Metallic and non – metallic properties ) किसी तत्त्व के परमाणु द्वाराइलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन बनाने की प्रवृत्ति उसकाधात्विक गुण कहलाती है । जैसेकि वर्ग 1 के क्षार धातुसबसे अधिक विघुत धनी तत्त्व कहलाते है क्योंकि येसरलता से इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन बना लेते है । येही सर्वाधिक धात्विक गुण रखते है । किसी तत्त्व के परमाणु द्वाराइलेक्ट्रॉन ग्रहण करके ऋणायन बनाने की प्रवृत्ति उसकाअधात्विक गुण कहलाता है । जैसेकि वर्ग 17 के हैलोजेन वर्गके तत्व सरलता से इलेक्ट्रॉन ग्रहणकर ऋणायन बना लेते है , अतः प्रबल अधात्विक गुण रखते है । एक ही वर्गमें ऊपर से नीचे जानेपर तत्व के परमाणुओं काआकार बढ़ता जाता है तथा प्रभावीनाभिकीय आवेश का मान कमहोता जाता है । अतःवर्ग में ऊपर से नीचे आयननएन्थैल्पी का मान क्रमिकरूप से घटता जाताहै और धनायन कानिर्माण सरलता से होता है। एकही आवर्त में बाएँ से दाएँ जानेपर परमाणु का आकार छोटातथा प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़ताहै । अत : आयननएन्थैल्पी का मान क्रमिकरूप से बढ़ता जाताहै और धनायन कानिर्माण सरलता से नहीं होताहै । अर्थात् तत्त्वके धात्विक गुणों में कमी होती है । धातुएँविघुत धनात्मक गुण रखती है अर्थात् विघुतधनी होती है । एक ही आवर्तमें बाएं से दाएँ जानेपर परमाणु का आकार छोटाएवं प्रभावी नाभिकीय आवेश का मान बढ़नेके कारण इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी का मान बढ़ताहै । अतः ऋणायनबनाने की प्रवृत्ति बढ़तीहै और तत्वों केअधात्विक गुणों में वृद्धि होती है । एकही वर्ग में ऊपर से नीचे जानेपर इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी के मान मेंकमी होती है अतः अधात्विकगुणों में कमी होती है । इसी कारण आवर्त सारणी के बॉए भागके तत्त्व धात्विक गुणों से समृद्ध होतेहै । जैसे – जैसेदाहिनी और बढ़ते हैधात्विक गुणों में कमी तथा अधात्विक गुणों में वृद्धि होती जाती है । अधातुएँविद्युत ऋणात्मक होती है अर्थात् विघुतऋणीगुण रखती है । आवर्त सारणी में इस प्रकार धातुव अधातु को पृथक करनेवाली एक टेढी – मेढ़ीरेखा बन जाती है, जिसके समीप स्थित तत्व दोनो प्रकार के गुणधर्मो कोप्रदर्शित करते है । इसतत्त्वों को उपधातु कहतेहै । इस रेखापर आने वाले ये उपधातु तत्वहै- बोरोन , सिलिकन , जर्मेनियम , आसैनिक , एन्टिमनी , टेल्यूरियम एवं पोलोनियम | सामान्यतया धातुओं के ऑक्साइड क्षारकीयतथा अघातुओं के ऑक्साइड अम्लीयहोते है ।