प्रतिजन व प्रतिरक्षी  ( Antigen and antibody )

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प्रतिजन व प्रतिरक्षी ( Antigen and antibody )

प्रतिजन वह बाहरी रोगाणु अथवा पदार्थ है जो शरीर में प्रविष्ट होने के पश्चात् बी- लसिका कोशिका ( B lymphocyte ) को प्रतिरक्षी उत्पादक प्लाज्मा कोशिका (Plasma cell) में रूपान्तरित कर प्रतिरक्षी उत्पादन हेतु प्रेरित करता है तथा विशिष्ट रूप से उस ही प्रतिरक्षी से अभिक्रिया करता है ।

प्रतिरक्षी वह प्रोटीन होता है जो देह में उपस्थित बी – लसिका कोशिकाओं द्वारा किसी प्रतिजन से अनुक्रिया के कारण निर्मित होता है तथा उस विशेष प्रतिजन से विशिष्ट रूप से संयोजित हो सकता है।

यह संयोजन प्रतिजनकी संरचनात्मक विशिष्टता पर निर्भर है तथा प्रतिरक्षा तंत्र की सफलता हेतु आधार भूत आवश्यकता है ।

1. प्रतिजन ( Antigen )

प्रतिजन ( Antigen ) साधारण रूप से ये वेबाहरी रोगाणु अथवा पदार्थ होते हैं जिनका आण्विक भार 6000 डॉल्टन ( Dalton ) अथवा उससे ज्यादा होता है । ये विभिन्न रासायनिक संगठनों के हो सकते हैं जैसे- प्रोटीन , पॉलीसैकेराइड , लिपिड या न्यूक्लिक अम्ल।

कभी – कभी शरीर के अंदर केपदार्थ तथा कोशिकाएँ ( जैसे विषाणु संक्रमित या कैंसर ग्रसितकोशिकाएँ ) भी प्रतिजन केतौर पर कार्य करतीहैं । शरीर में प्रविष्ट होने के पश्चात् प्रतिजन का सामना सर्वप्रथम स्वाभाविक प्रतिरक्षी विधियों से होता है।

तत्पश्चात्प्र तिजन विशिष्ट प्रतिरक्षा विधि को सक्रिय करता है प्रतिजन विशिष्टप्रतिरक्षी से संयोजित हो प्रतिजन – प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया करते हैं ।

सामान्यतः प्रोटीनके अलावा अन्य रसायनिक पदार्थ प्रतिरक्षी के साथ क्रियातो कर सकते हैंपरन्तु ये प्रतिरक्षी निर्माणमें अधिक सक्रिय नहीं होते । प्रतिजन सम्पूर्णअणु के रूप मेंप्रतिरक्षी से प्रतिक्रिया नहींकरता वरन् इसके कुछ विशिष्ट अंश ही प्रतिरक्षी सेजुड़ते है ।

इनअंशों को एण्टीजनी निर्धारकया ( Antigenic determinantorepitope ) कहाजाता है । प्रोटीनप्रतिजन में करीब 6-8 ऐमीनो अम्लों की एक श्रृंखलाएण्टीजनी निर्धारक के रूप मेंकार्य करती है ।

एकप्रोटीन में कई एण्टीजनी निर्धारकहो सकते हैं । इनकी संख्याको एण्टीजन की संयोजकता ( valency ) कहा जाताहै ।

अधिकांश जीवाणुओंमें एण्टीजनी संयोजकता 100 या अधिक होसकती है । विशिष्टप्रतिरक्षा में प्रतिजन के विनाश कीकार्यविधि चार चरणों में संपादित होती है ।

अन्तर्निहितप्रतिजन तथा बाह्य प्रतिजन में विभेद करना ।

बाह्यप्रतिजन के ऊपर व्याप्तएण्टीजनी निर्धारकों की संरचना केअनुसार बी – लसीका कोशिकाओं ( B – lymphocyte cell ) का सक्रियण तथा उनके द्वारा प्लाज्मा कोशिकाओं ( Plasma cells ) का निर्माण ।

प्लाज्माकोशिकाओं द्वारा विशिष्ट प्रतिरक्षियों का निर्माण ।

प्रतिजन- प्रतिरक्षी [ Antigen ( Ag ) – Antibody ( Ab ) ] प्रतिक्रिया तथा कोशिका – माध्यित प्रतिरक्षा ( Cell mediated immuntiy , CMI ) द्वारा प्रतिजन का विनाश ।

2. प्रतिरक्षी( Antibody )

प्रतिरक्षी( Antibody ) प्रतिरक्षीको इम्यूनोग्लोबिन ( संक्षिप्त में Ig ) भी कहा जाताहै । ये प्लाज्माकोशिकाओं द्वारा निर्मित गामा ग्लोबुलिन ( y – globulin) प्रोटीन हैं जो प्राणियों केरक्त तथा अन्य तरल पदार्थों में पाए जाते है ।

प्रतिरक्षी, प्रतिजन को पहचानने तथानिष्प्रभावी करने हेतु प्रतिजन से क्रिया करतेहैं । प्रतिरक्षी कावह भाग जो प्रतिजन सेक्रिया करता है पैराटोप ( Paratope ) कहलाता है।

2.1. प्रतिरक्षी की संरचना ( Structure of antibody ) प्रतिरक्षी का आकार अंग्रेजीके ‘ Y ‘ अक्षर की तरह होताहै । यह चारसंरचनात्मक इकाईयों से मिलकर बनीहोती है । इनमेंदो भारी व बड़ी [ H ] तथादो हल्की व छोटी [ L ] पॉलिपेप्टाइडशृंखलाएँ होती हैं ।

एक भारीव एक हल्की श्रृंखलामिलकर HL द्विलक ( HL dimer ) बनाती हैं ।दो द्विलकमिलकर एक प्रतिरक्षी कानिर्माण करते हैं ।

दूसरे शब्दोंमें कहें तो एक प्रतिरक्षीअणु दो समरूपी अर्धाशोंसे मिलकर बना होता है ।दोनोंअर्धाश आपस में डाइसल्फाइड बंध से संयोजित होतेहै ।

प्रत्येक अर्धाशएक H व एक L पॉलिपेप्टाइडश्रृंखला से मिलकर बनाहोता हैं । हर अर्धाशमें पाए जाने वाली H तथा L शृंखलाओं को भी डाइसल्फाइडबंध परस्पर संयोजित करता है ।

प्रत्येकभारी श्रृंखला 440 अमीनों अम्लों से तथा प्रत्येकहल्की श्रृंखला 220 अमीनों अम्लों से बनी होतीहै । भारी पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला पर कार्बोहाहड्रेट श्रृंखला जुड़ी होती है ।

प्रत्येकभारी व हल्की श्रृंखलादो भागों में विभक्त होती है-

अस्थिर भाग( Variable portion )

अस्थिर भाग( Variable portion ) यह भाग प्रतिजन से क्रिया करताहै तथा श्रृंखला के NH , अंश की तरफ पायाजाता है । इसेFab भाग भी कहते है।

स्थिर भाग( Constant portion )

स्थिर भाग( Constant portion ) यहभाग श्रृंखला के COOH अंश की तरफ होताहै तथा Fc भाग कहलाता है । अधिकतरप्रतिरक्षियों के ‘ Y ‘ स्वरूप में दोनों भुजाओं के उद्गम स्थललचीले होते है तथा कब्जेअथवा हिन्ज ( Hinge ) कहलाते हैं ।

लचीले होनेके कारण हिन्ज प्रतिरक्षी के अस्थिर भागको प्रतिजन के छोट बडेअणु समाहित कर अभिक्रिया करनेमें मदद करता है ।

प्रतिरक्षियों के प्रकार( Types of antibodies )

प्रतिरक्षियों के प्रकार( Types of antibodies ) प्रतिरक्षियोंमें पाँच प्रकार की भारी पॉलिपेप्टाइडशृंखलाएँ पाई जाती है । इन्हेंयूनानी भाषा के अक्षरों ( ( Alpha ) , ( Gamma ) , ( Delta ) , ( Epsilon ) & ( mu ) दर्शायाजाता है ।

भारीश्रृंखला के आधार परप्रतिरक्षियों के पाँच प्रकारहोते हैं ( सारणी 4.1 ) | IgA एक द्विलक (Dimeric) तथा IgM एकपंचलक ( Pentameric ) संरचना है । अन्यसभी प्रतिरक्षी एकलक या मोनोमेरिक ( Monomeric ) होती हैं ।

IgG देह की प्रमुख संवहनीयप्रतिरक्षी है तथा रक्तएवं अन्य द्रव्यों में उपस्थित होती है ।

IgG एकमात्रप्रतिरक्षी है जो आवल( Placenta ) को पार कर भ्रूण तकपहुँच सकती है । सीरम में पायी जाने वाली प्रतिरक्षियों में IgG की सांद्रता सर्वाधिकहोती है ।

IgM प्रतिजनकी अनुक्रिया से उत्पादित प्रथमप्रकार की प्रतिरक्षी है।

IgG का उत्पादन IgM केउत्पादन के पश्चात होताहै ।

IgA माँ के दूध मेंपाया जाने वाला अकेला प्रतिरक्षी है । यहनवजात शिशु की प्रतिरक्षा केलिए महत्वपूर्ण है ।

IgE प्रतिरक्षीप्राथमिक रूप से बेसोफिल तथामास्ट कोशिका पर क्रिया करताहै तथा प्रत्युर्जता या ऐलर्जी (Allergy) क्रियाओं में हिस्सा लेती है ।

प्रतिरक्षियों के प्रकार
क्र.सं.प्रतिरक्षी का प्रकारउपस्थित भारी पॉलिपेप्टाइड
1IgGgamma
2IgMmu
3IgAalpha
4IgEepsilon
5IgDdelta
रक्त व रक्त समूह ( Blood and blood groups )

रक्त एक तरल जीवितऊतक है जो गाढ़ा, चिपचिपा व लाल रंगका होता है तथा रक्तवाहिनियों में प्रवाहित होता रहता है । यहप्लाज्मा ( निर्जीव तरल माध्यम ) तथा रक्त ESELNG कणिकाओं ( जीवित कोशिकाओं ) से मिलकर बनाहै । प्लाज्मा आंतोंद्वारा अवशोषित पोषक तत्वों को शरीर केविभिन्न अंगों तक पहुँचाने तथाविभिन्न अंगों से हानिकारक पदार्थोंको उत्सर्जी अंगों तक लाने काकार्य करता है । प्लाज्मामें तीन प्रकार की रक्त कणिकाएंमिलती है ।

1. लालरक्त कणिकाएँ ( Red blood corpuscles ) गैसों का परिवहन तथाविनिमय करती है ।

2. श्वेतरक्त कणिकाएँ ( White blood corpuscles ) शरीर की रोगाणुओं आदिसे रक्षा करती है ।

3. बिंबाणु( Platelets ) – रक्तवाहिनियों की सुरक्षा तथारक्त स्त्राव रोकने में मदद करती है ।

रक्त समूह( Blood groups )

सर्व प्रथम वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टीनर ने 1901 में रक्त का विभिन्न समूहों में वर्गीकरण किया । रक्त को लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रतिजनों की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर वर्गीकृत कर विभिन्न समूहों में बांटा गया है ।

सामान्यतःये प्रतिजन प्रोटीन , ग्लाइकोप्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट या ग्लाइकोलिपिड होसकते है । येप्रतिजन दो विकल्पी ( allele ) से उत्पन्नहोते है । वंशानुगतरूप से एक एकरुधिर वर्ग का विकल्पी हमेंमाता व पिता दोनोंसे प्राप्त होता है

लाल रक्त कणिकाओ की सतह परमुख्य रूप से दो प्रकारके प्रतिजन – ( प्रतिजन ‘ A ‘ व प्रतिजन ‘ B ‘ ) पाए जातेहैं । इन प्रतिजनोंकी उपस्थिति के आधार परकुल चार प्रकार के रक्त समूहपाए जाते हैं-

A , B , AB तथा 0 । इस वर्गीकरणको ABO समूहीकरण कहा जाता है । ‘A’ प्रकार के रक्त में लाल रक्त कणिकाओं पर ‘A’ प्रकार का प्रतिजन तथा ‘B’ प्रकार के रक्त में ‘B’ प्रकार का प्रतिजन पाया जाता है ।

AB प्रकारके रक्त में लाल रक्त कणिकाओं पर A व B दोनों प्रकार के प्रतिजन पाएजाते हैं । ‘O’ प्रकार के रक्त में लाल कणिकाएं ‘A’ तथा ‘B’ प्रतिजन दोनों से विहीन होती है । ‘A’ व ‘B’ के अतिरिक्त लाल रक्त कणिकाओ पर आर एच (Rh) नामक एक और प्रतिजन पाया जाता है ।

यदि रक्त कणिकाओं की सतह पर आर एच प्रतिजन (Rhantigen) उपस्थित होतो रक्त आर एच धनात्मक( Rh positive या Rh+) कहलाता है ।वह रक्त जिस में रक्त कणिकाएं आर एच प्रतिजन से विहीन होती हैं आर एच ऋणात्मक( Rh negative या Rh-) कहलाता है । यह व्यवस्था आर एच ( Rh ) समूहीकरण कहलाती है ।

जिन लोगों का रक्त समूह A प्रकार का होता है उनके शरीर में IgM प्रकार की Anti – B प्रतिरक्षी पायी जाती है । इस ही प्रकार जिनका रक्त B प्रकार का है उनकेशरीर में Anti A प्रतिरक्षी तथा O प्रकार के रक्त वालों के शरीर में Anti A व Anti B प्रतिरक्षी पाई जाती है ।

AB रक्तसमूह वाले व्यक्तियों में AntiA व AntiB दोनों ही प्रकार कीप्रतिरक्षी नहीं पाई जाती है ( सारणी 4.2 ) | A रक्त समूह वाले व्यक्ति को जब B प्रकारका रक्त चढ़ा दिया जाता है तो उसकेशरीर में उपस्थित AntiB प्रकार की प्रतिरक्षी B प्रकारकी रक्त कणिकाओं का विनाश करतीहै ।

अतः रक्तदान करते समय विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए कि ग्राही वदाता का रक्त एकही रक्त समूह का हो ।’ O ‘ रक्त समूह वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा’ AB ‘ रक्त समूह वाले व्यक्ति को सर्वग्राही कहाजाता है ।

अर्थात् रक्त समूह वाला व्यक्ति सभी को रक्त कादान कर सकता हैतथा AB रक्त समूह वाला व्यक्ति सभी रक्त समूहों का रक्त ग्रहणकर सकता है ।

Rh कारक( Rh factor) आर एच ( रीसस ) कारक करीब 417 अमीनों अम्लों का एक प्रोटीन है जिसकी खोज मकाका रीसस ( Macaca rhesus ) नाम के बंदर में की गई थी।

उन्होंने15 वर्षीय एक बालक में भेड़ के रक्त सेरक्ताधान करवाया था । हालांकि इसके दस वर्ष पश्चातपशुओं हिपेटाइटिस से ग्रसित होताहै । इस रोगको गर्भ रक्ताणुकोरकता ( Erythroblastosis fetalis ) कहाजाता है ।

इस रोग केउपचार हेतु प्रथम प्रसव के 24 घण्टों के भीतर माताको प्रति IgG प्रतिरक्षियों ( anti Rh.D ) का टीका लगाया जाता है । इन्हेरोहगम ( Rhogam ) प्रतिरक्षी कहा जाता है ।

ये प्रतिरक्षी माता के रक्त में मिश्रित भ्रूण की आर एच धनात्मक रक्त कोशिकाओं का विनाश कर माता के शरीर में प्रतिरक्षी उत्पन्न होने से रोकती हैं।

कई बार इस रोग के उपचार केलिए शिशु का संपूर्ण रक्तरक्ताधान के द्वारा बदलाजाता है । कई बार रक्ताधान के पश्चात् होने वाली रूधिर लयनता का प्रमुख कारण भी आर एच असंगतता (Rhincompatibility ) होती है ।

रक्ताधान ( Blood transfusion )

यह एक ऐसी विधि है जिसमें एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के परिसंचरण तंत्र में रक्त या रक्त आधपारित उत्पादों जैसे प्लेटलेट , प्लाज्मा आदि को स्थानान्तरित कियाजाता है ।

सर्वप्रथमरक्ताधान 15 जून 1667 को फ्रांस केचिकित्सक डॉ . जीन बेप्टिस्ट डेनिस द्वारा संपादित से मानव मेंरक्ताधान निषेध कर दिया गया।

रुधिर वर्ग का आनुवांशिक महत्व( Significance of blood group heredity )

मनुष्यों में रुधिर के कई प्रकारपाए जाते है जिन्हें ABO रुधिरतंत्र के नाम सेसंबोधित किया जाता है । रुधिरवर्ग का नियंत्रण तीनविकल्पियों ( Alleles ) के आपसी तालमेल पर निर्भर करताहै ।

ये तीनोंविकल्पी एक ही जीनके भाग होते है तथा IA , P तथायात के द्वारा प्रदर्शितकिए जाते है । लालरक्त कोशिकाओं की सतह परपाए जाने वाले प्रतिजन A ( AntigenA ) तथा प्रतिजन B ( Antigen B ) का निर्माण क्रमशःविकल्पी तथा द्वारा किया जाता है । विकल्पीI तथा ।

अप्रभावी होतेहै तथा किसी प्रतिजन के निर्माण मेंसंलग्न नहीं होते है ।

किसीमनुष्य में अभिव्यक्त रक्त वर्ग किन्हीं दो विकल्पियों केबीच की पारस्परिक क्रियापर निर्भर है ।

मनुष्यों में विकल्पी की उपस्थिति के आधार पर रूधिर के कुल छः प्रकार के जीन प्रारूप पाए जाते है

O रक्त समूह समयुग्मजी अप्रभावी जीन क्रिया ( Homozygous recessive gene interaction ) कापरिणाम है । इनजीन प्रारूपों की वंशागति मेंडलके नियमानुसार होती है ।

क्र . सं .रुधिर वर्गजीन प्रारूप
1AIAIAIAi
2BIBIB IBi
3ABIAIB
4Oii

रुधिरवर्ग की आनुवांशिकता केकई अनुप्रयोग है । इसकाउपयोग मुख्य रूप से पैतृकता संबंधीविवादों को हल करने में , सफल रक्ताधान कराने में , नवजात शिशुओं में रुधिर लयनता तथा आनुवांशिक रोगों जैसे हीमोफीलिया आदि के इलाज में कियाn जाता है।

पैतृकता संबंधी विवादों के हल मेंरुधिर वर्ग की आनुवांशिकता के ज्ञान का उपयोग निम्नउदाहरण से समझा जा सकता है – माना कि एक शिशुजिस पर दो दंपत्तिअधिकार जता रहे हैं , का रुधिर वर्ग B हैं ।

एक दंपत्तिमें पुरूष का रुधिर वर्गO ( ii ) है तथा स्त्री का रुधिर वर्ग AB ( IA IB ) है। दूसरे दंपत्ति में पुरूष A ( IAIA) है तथा स्त्री B ( IBi ) रुधिर वर्ग की है ।

मेण्डल वंशागति के नियमानुसार इनपरिस्थितियों में शिशु के रुधिर वर्गकी निम्न संभावनाएं हैं ।

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