प्रकाश का परावर्तन ( Reflection of Light ):

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प्रकाश का परावर्तन ( Reflection of Light ):

Introduction :

प्रकाश ऊर्जा का एक रूपहै । प्रकाश केकारण विभिन्न वस्तुओं को हम देखसकते है ।

प्रकाशके उत्पादन , प्रकृति एवं इससे सम्बन्धित घटनाओं के प्रति हमेशासे ही जिज्ञासा रही है । हम अपनेसामान्य अनुभव से जानते हैकि प्रकाश सीधी रेखा में गमन करता है एवं इसकीचाल तीव्र होती है

प्रकाश के सीधी रेखा गमन पथ को प्रकाशकिरण एवं इन किरणों कासमूह प्रकाश पुंज कहलाता है ।

प्रकाशसे जुड़ी कुछ घटनाएं परावर्तन , अपवर्तन , विक्षेपण आदि प्रकाश की किरण संकल्पनासे ही आसानी सेसमझे जा सकते है

अर्थात् इन परिघटनाओं कोसमझने के लिए प्रकाशकी प्रकृति एवं सूक्ष्म भौतिक की आवश्यकता नहीं है ।

इस अध्यायमें प्रकाश के किरण रूपसे परावर्तन , अपवर्तन , विक्षेपण एवं प्रकीर्णन का अध्ययन करेंगे।

अध्याय के अंतिम भागमें मानव नेत्र सहित महत्वपूर्ण प्रकाशिक उपकरण सूक्ष्मदर्शी एवं दूरदर्शी की रचना एवंकार्यविधि के बारे में पढ़ेंगे ।

चूंकि इसअध्याय में अध्ययन की जाने वालीपरिघटनाएं दैनिक जीवन में सामान्य रूप से प्रेषित कीजा सकती है इसलिए यहस्थूल प्रकाशिकी |

साथ ही इन घटनाओंसे सम्बन्धित नियम ज्यामिति के सामान्य नियमोंसे व्युत्पन्न किए जाते है अतः इसेज्यामितीय प्रकाशिकी ( GeometricalOptics ) भीकहते है ।

प्रकाश कापरावर्तन( Reflection of Light ):

जब कोईप्रकाश किरण एक माध्यम सेदूसरे माध्यम में प्रवेश करती हैं तो परिसीमा परइस किरण का कुछ भागया पूर्ण किरण अनुसार

पुनःप्रथम माध्यम में लौट जाती है । इसघटना को प्रकाश का परावर्तन कहतेहैं ।

प्रकाशके परावर्तन के नियम हैं

1. आपतनकोण i परावर्तन कोण r के बराबर होताहै । अर्थात् i = r

आपतितकिरण , परावर्तित किरण एवं परावर्तक सतह पर अभिलम्ब तीनोंएक ही तल परस्थित होते हैं ।

यह तलआपतन तल कहलाता है।

प्रकाशके परावर्तन में प्रकाश की आवृत्ति , तरंगदैर्ध्य एवं चाल में कोई परिवर्तन नहीं होता किन्तु तीव्रता सामान्यतः घटती है

समतलदर्पण ( Plane mirror ) : समतल दर्पण का परावर्तक सतहसमतल होता है ।

इसमें शीशे के एक ओरधातु की पतली परतचढ़ी होती है और किरणक्षय को रोकने केलिए लेप किया जाता है

। शीशेके पीछे चाँदी की परत यापारे की परत परावर्तकसतह का कार्य करतीहै ।

समतल दर्पणमेंप्रतिबिम्बकीस्थिति:

समतलदर्पण में किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब दर्पणके पीछे उतनी ही दूरी परबनती है , जितनी दूरी पर वस्तु दर्पणके आगे रखी होती है ।

यह प्रतिबिम्ब काल्पनिक , वस्तु के बराबर एवंपार्श्व उल्टा ( lateral inverse ) बनता है ।

समतल दर्पणसेसंबंधितकुछविशेषतथ्य:

1. यदिकोई व्यक्ति u चाल से दर्पण कीओर चलता है , तो उसे दर्पणमें अपना प्रतिबिम्ब 2u चाल से अपनी ओरआता प्रतीत होता है ।

2. किसीवस्तु का समतल दर्पणमें पूर्ण प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पणकी लम्बाई वस्तु की लम्बाई कीकम से कम आधीहोनी चाहिए ।

3. यदिआपतित किरण को नियत रखतेहुए दर्पण को θ° कोण सेघुमा दिया जाए , तो परावर्तित किरण2θ° कोण से घूम जातीहै

4. यदिदो समतल दर्पण θ˚ कोणपर झुके हों , तो उनके द्वाराउनके मध्य में रखी वस्तु के बनाए गएकुल प्रतिबिम्बों की संख्या 360˚/θ°

-1 ° होतीहै । यदि यहपूर्णांक नहीं है , तो इसे अगलापूर्णांक मान लिया जाता है ।

इसप्रकार समकोण पर झुके दोदर्पणों के बीच रखेवस्तु के तीन प्रतिबिम्बबनते हैं और दो समानान्तरदर्पणों के बीच रखेवस्तु के

अनन्त प्रतिबिम्बबनते हैं ।

समतल दर्पणकेउपयोग:

समतलदर्पण का उपयोग बहुरूपदर्शी( Kaleidoscope ) , परिदर्शी ( Periscope ), आईना(Lookingglass) आदिमें किया जाता है ।

गोलीय दर्पण( Spherical Mirror ):

गोलीय दर्पणएक खोखले गोले से काटा हुआएक भाग होता है । गोलीयदर्पण सामान्यतः काँच से बनाए जातेहैं जिसकी एक सतह रजितकी जाती है

1 . उत्तलदर्पण

2. अवतलदर्पण

1. उत्तल दर्पण( Convex mirror ) : जिसगोलीय दर्पण का परावर्तक सतहउभरा रहता है , उसे उत्तल दर्पण कहा जाता है ।

उत्तल दर्पण को अपसारी दर्पण( Diverging Mirror ) भीकहा जाता है क्योंकि यहअनंत से आने वालीकिरणों को फैलाता है

2. अवतल दर्पण( Concave mirror ) : जिसगोलीय दर्पण का परावर्तक तलधंसा रहता है , उसे अवतल दर्पण कहते हैं ।

अवतल अवतलदर्पण दर्पण को अभिसारी दर्पण( Converging Mirror ) भीकहा जाता है क्योंकि यहअनंत से आने वालीकिरणों को सिकोड़ता है

गोलीय दर्पणोंसेसम्बन्धितराशियाँतथाउनकीपरिभाषायें( Terms and Their Definitions Related to Spherical Mirrors ):

1. द्वारक ( Aperture ) दर्पण के वृत्ताकार चापको गोलीय दर्पण का द्वारक कहतेहैं । चित्र मेंAB दर्पण का द्वारक है।

2. ध्रुव ( Pole ) दर्पण के पृष्ठ कामध्य बिन्दु ध्रुव कहलाता है । चित्रमें P बिन्दु गोलीय दर्पण का ध्रुव है।

3. वक्रता केन्द्र( Centre of Curvature ) दर्पणजिस खोखले गोले का भाग हैउसका केन्द्र दर्पण का वक्रता केन्द्रकहलाता है । चित्रमें बिन्दु C गोलीय दर्पण का वक्रता केन्द्रहै ।

4. वक्रता त्रिज्या( Radius of Curvature ) दर्पणके वक्रता केन्द्र तथा ध्रुव के बीच कीदूरी को वक्रता त्रिज्याकहते हैं तथा इस R से प्रदर्शित करतेहैं । चित्र मेंदूरी CP गोलीय दर्पण की वक्रता त्रिज्याहै ।

5. मुख्य अक्ष( PrincipleAxis ) वक्रताकेन्द्र C तथ ध्रुव P कोमिलाने वाली रेखा को मुख्य अक्षकहते हैं ।

चित्र मेंXX ‘ मुख्यअक्ष है ।

6. मुख्य फोकस( Princpal Focus ) मुख्यअक्ष के समान्तर आपतितकिरणें दर्पण से परावर्तन केबाद मुख्य अक्ष के जिस बिन्दुपर मिलती हैं या मिलती हुईप्रतीत होती हैं

उसे गोलीय दर्पण का मुख्य फोकसकहते हैं । चित्र मेंF मुख्य फोकस है ।

अवतलदर्पण का मुख्य फोकसबिन्दु दर्पण के सामने तथाउत्तल दर्पण का फोकस बिन्दुदर्पण के पीछे स्थितहोती है ।

7. फोकस दूरी( Focal Length ) मुख्यफोकस बिन्दु तथा दर्पण के ध्रुव केबीच की दूरी कोफोकस दूरी कहते हैं चित्र में FP फोकस दूरी है । इसेसे प्रदर्शित करते है ।

चिन्ह परिपाटी( Sign Convention )

गोलीयसतहों से परावर्तन एवंअपवर्तन का अध्ययन करनेके लिए हम एक चिन्हपरिपाटी अपनाते हैं जो नवीन कार्तीय चिन्ह परिपाटी कहलाती है । इसपरिपाटी के अनुसार ध्रुवको मूल बिन्दु एवं मुख्य अक्ष को X अक्ष मानते हुए आपतित प्रकाश की दिशा मेंमापी गई दूरियाँ कोधनात्मक मानते हैं विपरीत दिशा में ऋणात्मक मानते हैं ।

मुख्य अक्षके लम्बवत् ऊपर की ओर धनात्मकY दिशा एवं प्रतिबिम्ब ( – ) नीचे की ओर ऋणात्मकY दिशा मानते हैं ।

अतः चिन्हपरिपाटी के अनुसार गोलीयसतह ( दर्पण , लेंस आदि ) की बिम्ब दूरी सामान्यतःऋणात्मक होती है

किन्तु प्रतिबिम्बदूरी ( v ) प्रतिबिम्ब की स्थिति केअनुसार ऋणात्मक या धनात्मक होसकती है ।

अवतलदर्पण की फोकस दूरीऋणात्मक तथा उत्तल दर्पण की फोकस दूरीधनात्मक होती है

अवतल दर्पणकेउपयोग:

1. बड़ीफोकस दूरी वाला अवतल दर्पण दाढ़ी बनाने में काम आता है ।

2. आँख, कान एवं नाक के डॉक्टर केद्वारा उपयोग में लाया जाने वाला दर्पण ।

3. गाड़ीके हेडलाइट ( Head – light ) एवं सर्चलाइट ( Search light ) में

4. सोलरकुकर ( Solar Cooker ) में ।

उत्तल दर्पणकेउपयोग:

1. उत्तलदर्पण द्वारा काफी बड़े क्षेत्र की वस्तुओं काप्रतिबिम्ब एक छोटे सेक्षेत्र में बन जाता है। इस प्रकार उत्तलदर्पण का दृष्टि क्षेत्र

( field – view ) अधिकहोता है ।

2. इसीलिएइसे ट्रक – चालकों या मोटरकारों मेंचालक के बगल मेंपृष्ठ – दृश्य दर्पण ( Rear – viewMirror ) लगाया जाता है ।

3. सड़कमें लगे परावर्तक लैम्पों में उत्तल दर्पण का प्रयोग कियाजाता है , विस्तार क्षेत्र अधिक होने के कारण येप्रकाश को अधिक क्षेत्रमें फैलाते हैं ।

उत्तल दर्पण से बने प्रतिबिम्ब

उत्तल दर्पण में किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब सदैव दर्पण के पीछे , उसके ध्रुव और फोकस के बीच , वस्तु से छोटा , सीधा एवं आभासी बनता है ।

यदि किसी वस्तु की उत्तल दर्पण से दूरी बढ़ायी जाय , तो दर्पण से बने आभासी एवं सीधे प्रतिबिम्ब का आकार छोटा होता जाता है तथा

उसकी स्थिति दर्पण पीछे ध्रुव से फोकस की ओर खिसकती जाती है

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