राजस्थान का अपवाह तंत्र आन्तरिक अपवाह प्रणाली राज्य का 60.2 प्रतिशत भू भाग इसके अन्तर्गत आता है । घग्घर नदी- अन्य नाम सरस्वती , द्वषद्वती , मृत नदी यह नदी शिवालिक श्रेणी में कालका ( हिमाचल ) से निकलकर पंजाब व हरियाणा राज्यों में बहते हुए टिब्बी ( हनुमानगढ ) के समीप तलवाडा झील से राजस्थान में प्रवेश करती हैं यह नदी भटनेर ( हनुमानगढ ) के समीप ही विलीन हो जाती हैं । लेकिन अच्छी वर्षा होने पर सूरतगढ तक जाती है । बाढ़ की स्थिति में यह नदी अपना पानी फोर्ट अब्बास ( पाकिस्तान ) तक ले जाती हैं घग्घर नदी का पाट क्षेत्र . नाली कहलाता हैं कान्तली नदी- शेखावाटी क्षेत्र की नदी कान्तली खण्डेला ( सीकर ) की पहाडियों से निकलकर झूझनू जिले में प्रवेश करके चुरू जिले की सीमा के निकट मंडरेला गांव में विलीन हो जाती है । लम्बाई लगभग 100 मीटर । सीकर जिले में कान्तली नदी के अपवाह क्षेत्र को तोरावाटी बेसिन कहते है । साबी नदी- सेवर की पहाडियों जयपुर से निकलकर अलवर जिले में बहते हुए हरियाणा में पटौदी ( गुडगांव ) के उत्तर में विलीन हो जाती है । काकनी नदी / काकनेय / मसूरदी- जैसलमेर के दक्षिण में कोटडी गांव से निकलकर बुझ झील का निर्माण करते हुए मीठा खाडी में गिर कर विलीन हो जाती हैं मन्था नदी / मेंढा / मेंथा- बैराठ की पहाड़ियों में स्थित मनोहरपुर जयपुर से निकलकर नागौर जिले में प्रवेश करके सांभर झील में गिर जाती है । प्रसिद्ध जैनतीर्थ लूणवां ( नागौर ) मन्था नदी के किनारे स्थित हैं रूपनगढ नदी- सलेमाबाद ( अजमेर ) के निकट से निकलकर उतर पूर्व की ओर बहते हुए जयपुर जिले में प्रवेश करके सांभी झील में गिर जाती हैं निम्बार्क समप्रदाय की प्रमुख पीठ सलेमाबाद ( अजमेर ) इसी नदी के किनारे स्थित है ।