राजस्थान में वन संसाधन

author
1 minute, 5 seconds Read

राजस्थान में वन संसाधन

राजस्थान में वन संरक्षण की योजना सर्वप्रथम जोधपुर नरेश महाराजा उम्मेद सिंह ने 1910 में बनाई ।

इसके मारवाड शिकार नियम 1921 बना ।

कोटा रियासत में 1924 में एवं जयपुर रियासत में 1931 मे शिकार कानून बना ।

 1935 में अलवर रियासत ने वन अधिनियम बनाया ।

बांसवाडा , बारां , चितोडगढ एवं प्रतापगढ़ जिलों में धोकडा एवं महुआ के साथ सागवान के वन मिलते है ।

चितोडगढ , उदयपुर , राजसमन्द जिले में चन्दन के बालवृक्ष मिलते है

वनस्थिति रिपोर्ट 2017 राजस्थान में वन 32.737 वर्ग किमी है। जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 9.57 प्रतिशत है ।

प्रदेश में अभिलेखित वन 37,737 वर्ग किमी में आरक्षित वन 38.11 प्रतिशत , संरक्षित वन 55.64 प्रतिशत , अवर्गीकृत 6.25 प्रतिशत है ।

yoursathi- nucher
yoursathi- nucher

वन क्षेत्र :-

आई एस एफ आर 2017 के अनुसार राजस्थान वन क्षेत्र 16,572 वर्ग किमी है । जो कि कुल क्षेत्रफल का 4.84 प्रतिशत है ।

अति सघन वन78 वर्ग किमी
मध्यम सघन वन 4340 वर्ग किमी
खुले वन12,154 वर्ग किमी
2015 की तुलना में 2017में 466 वर्ग किमी की बुद्धि हुई है ।
राज्य में कुल वनावरण16,572 वर्ग किमी
राज्य में कुल वृक्षावरण8,266 वर्ग किमी
राज्य में कुल वनावरण एवं वृक्षावरण24,838 वर्ग किमी

राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का 726 प्रतिशत भारत के वन एवं वृक्षावरण- 0.04 हैक्टेयर

राज्य में वनों के प्रकार –

1.            शुष्क सागवान वन

बासवाडा , चितोडगढ , डूगरपूर , राजसमन्द , उदयपुर , कोटा एवं बारा में विस्तृत । कुल वनों का 686 प्रतिशत द्य वर्षा 80 से 100 सेमी ।

2.            मिश्रित पतझड पन-

राज्य में 28.38 प्रतिशत भाग पर चितोडगद , प्रतापगढ , भीलवाडा , बूदी , अजमेर , टोंक , सवाई माधोपुर , कोटामें विस्तृत । साल व धोकडा के वृक्ष बहुतायत एवं खैर , ढाक , बांसआदि मिलते है ।

3.            शुष्क वन –

राज्य के उतरी पश्चिमी भागों में । खेजडी . कैर . बैर . फोग . बबूल . रोहिडा.आदि । सेवण , धामण , ताराकूरी घासे मिलती है । राज्य का सबसे महत्वपूर्ण वृक्ष खेजड़ी है । इसे राजस्थान का राज्य वृक्ष ध् कल्पवृक्ष भी कहते है । सस्कृत में इसे शमी एवं स्थानीय भाषा में इसे जाटी कहते है ।खेजडी के हरे फलों को सागरी तथा सूखने के बाद खोखा कहते है । हरी पतियां लूब या लूक कहलाती है।खेजड़ी की विजयदशमी को पूजा की जाती है ।

4.            अर्द्ध ( उपोष्ण ) सदाबहार वन –

1.            क्षेत्र- माउण्ट आबू सिरोही , वर्षा 150 सेमी वार्षिक ।

2.            वृक्ष- आग , बास , नीम , सागवान आदि ।

अन्य प्रकार के वन :-

1.            सालर वन- उदयपुर . चितोडगढव राजसमंद . सिरोही , अजमेर , अलवर , जयपुर में विस्तृत ।साल वृक्ष की प्रधानता ।

2.            पलास ( ढाक ) वन राजसमंद के आस पास के क्षेत्र में । जगल की ज्वाला के नाम से प्रसिक है ।

राजस्थान के राज्य प्रतीक :-

राज्य पक्षी:-गोंडावण ( 1981 में घोषित ) .
राज्य वृक्ष:-खेजडी ( 1983 में घोषित ) ,
राज्य पुष्प:-रोहिडा ( 1983 में घोषित )

प्रमुख वानस्पतिक नाम :-

खेजडीप्रेसेपिस सिनेररिया
रोहिडाटेकोमेला अनडुलेटा
सेवण घासलसियुरूस सिडिकुस 
बबूलएकेसिया अरेबिका
कूमटएकेसिया सेनेगल
जालडिकिल्पटेरा साल्डेरा
चिरमीएब्रोस प्रोकेटोरियस ( बेल रूपी पौधा )
पलासब्यूटिया मालोस्पा

राजस्थान के राज्य पक्षी का क्या नाम हैं ?

राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण राष्ट्रीय मरूद्यान ( जैसलमेर , बाडमेर ) सोखलिया ( अजमेर ) , सोरसन ( बारा ) में मिलता है । वैज्ञानिक नाम कायोटीस नाइग्रीसेप्स हैं

राष्ट्रीय वन नीति कब घोषित की गई ?

सर्वप्रथम 1894 में राष्ट्रीय वन नीति घोषित की गई ।

1949-50 में राज्य सरकार द्वारा वन विभाग की स्थापना की गई उस समय राज्य में 13 प्रतिशत भाग पर वन थे ।

न्वीनतम रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 9.59 प्रतिशत भाग पर वन पाया जाता है ।

1952 मे घोषित वन नीति के अनुसार देश में 33 प्रतिशत भू भाग पर वन होने चाहिए ।

दिसम्बर 1988 में वन अधिनियम पारित कर वन संरक्षण सुरक्षा , विकास के प्रयास किये गये ।

1953 में वन अधिनियम पारित कर वन संरक्षण के प्रयास किये गये ।

देश के कुल वन क्षेत्र में राजस्थान का वन क्षेत्र 4.73 प्रतिशत है ।

राजस्थान वन अधिनियम 1953 के तहत वनों को तीन भागो में

  • आरक्षित 37.63 प्रतिशत ,
  • रक्षित 56 08 प्रतिशत ,
  • अवर्गीकृत 6.29 प्रतिशत में बांटा गया ।

राजस्थान के अधिकाश पन दक्षिणी एवं दक्षिणी पूर्वी क्षेत्रों में पाये जाते हैं राज्य में कुल 13 वन मण्डल है ।

जोधपुर , जयपुर , कोटा , उदयपुर , अजमेर , भरतपुर , टोंक , बूंदी , बारा , झालावाड़ , चितौडगढ , सिरोही बांसवाड़ा ।

क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा वन मण्डल जोधपुर एवं सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला मण्डल उदयपुर हैं

राज्य में वानिकी विकास हेतु प्रयत्न :-

राज्य वानिकी कियान्वन योजना-

1996 से 2016 तक 20 वर्षों के लिए सरकार द्वारा वृक्षारोपण हेतु तैयार की गई योजना ।

शहरी वन विकास योजना –

यह योजना जयपुर , जोधपुर , कोटा , बीकानेर , उदयपुर , अलवर , भीलवाडज्ञ , श्रीगगानगर , पाली सिरोही कुल 10 जिलों में कियान्वित हो रही है ।

इसमें कोई भी स्थानीय निवासी 20 रू प्रति पौधा देकर अपनी भूमि पर अपना पंसदीदा पौधा लगवा सकता है ।

मरू वृक्षारोपण कार्यकम-

केन्द्र व राज्य की 75: 25 की भागीदारी । 10 मरूस्थलीय जिलों में सात चरणों में वानिकी विकास कार्यकम ।

वानिकी विकास परियोजना-

1995 से 2002 तक के लिए जापान के सहयोग से राज्य के 15 गैर मरूस्थलीय जिलों में 145 करोड रू की लागत से प्रारम्भ की गई ।

इंदिरा गाधी नहर क्षेत्र वृक्षारोपण व चारागाह विकास परियोजना- जापान के सहयोग से प्रारम्म

राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता परियोजना:-

442 करोड रू की सहायता से जापान ने 2003 में राजस्थान वन एव जव विविधता परियोजना के लिए 5 वर्षों हेतु 18 जिला व इंदिरा गांधी नहर क्षेत्र , में । 2 जन्तु उद्यानों व 10 पारिस्थितिक प्यटन स्थलों का विकास भो इसके प्रथम चरण में किया जायेगा ।

समन्वित गामीण वनीकरण समृद्धि योजना :-

वर्ष 2001-02 में सभी जिलों में वन विकास अभिकरण बनाए गए । राज्य में अब तक भारत सरकार से 33 वन विकास अभिकरण स्वीकृत कराए जा चुके हैं

बनास भू – जल संरक्षण कार्यकम-

1999-2000 से 4 जिलो टोंक , जयपुर , दौसा , सवाई माधोपुर मे ।

विश्व खाद्य कार्यक्रम योजना-

उदयपुर , चितोडगढ , बांसवाडा , प्रतापगढ , डूंगरपूर जिलों के दुर्गम वन क्षेत्रों में कार्य करवाए जाते है ।

IND-FOOD FOR WORK परियोजना-

उदयपुर , डूंगरपुर , बांसवाडा . प्रतापगढ , चितोडगढ में प्रारम्भ की गई ।

अरावली वृक्षारोपण परियोजना-

अरावली पर्वतमाला क्षेत्र में हरियाली बिछाने के लिए जापान के सहयोग से 10 जिलों में 1 अप्रेल 1992 को शुरू होकर 31 मार्च 2000 को समाप्त हो गई ।

स्व . कर्पूरचन्द कुलिश स्मृति वन जयपुर-

राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव श्री मिट्ठालाल मेहता के प्रयासों से जयपुर के झालाना वनखण्ड में कर्पूरचन्द कुलिश स्मृति वन बनाया गया हैं । 20 मार्च 2006 को इस का नामकरण स्व . कुलिश के नाम पर किया गया ।

इको टुरिज्म पॉर्क-

झालाना वन क्षेत्र , जयपुर में बन रहा है ।

कैक्टस गार्डन-

कुलधरा गांव जैसलमेर में विकसित किए जा रहे है ।

विश्व वानिकी उद्यान-

झालाना जयपुर में दुर्लभ पजातियों के पौधों को उगाकर वृक्ष प्रेमियों के अध्ययन व अनुसंधान केन्द्र के रूप में विकसित किए जा रहे है ।

वानिकी अनुसंधान केन्द्र-

गोविन्दपुरा जयपुर , बांकी सिसारमा , उदयपुर , में खोले गये ।

जनता वन योजना –

21 मार्च 1996 में शुरू । भारत सरकार द्वारा उदयपुर जिले की सालखेडा वन सुरक्षा एवं प्रबन्ध समिति को इंदिरा गांधी वृक्ष मित्र पुरस्कार दिया । हरित राजस्थान अभियान के तहत डूंगरपुर के खेमारू गांव में 6 लाख 12 हजार पौधे रोपकर गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज कराया ।

फार्म वानिकी-

किसानो , विद्यालयों गाम पंचायतों , शहरी लोगों को निशुल्क पौध वितरित किए ।

बायोलॉजिकल पार्क-

नाहरगढ जयपुर के 7 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में स्थापित पार्क ।

उदेश्य-

विभिन्न चिडियाघरों में रह रहे वन्य प्राणियों एवं विलुप्तप्राय प्रजातियों को प्राकृतिक परिवेश उपलब्ध करवाना है । यह राज्य का प्रथम जैविक उद्यान है ।

रामासडी का बलिदान-

जीवों की रक्षार्थ पहला बलिदान सन 1604 को जोधपुर रियासत के रामासडी गांव में करमा व गौरा नामक व्यक्तियों द्वारा किया गया ।

खेजडली का बलिदान-

जोधपुर जिले के खेजडली गांव में अमृता देवी विश्नोई स्मृति कृष्ण मृग पार्क स्थापित किया गया है । यहां अमृता देवी ने 1730 ई में 363 स्त्री पुरूषों सहित वृक्षाों को बचाने हेतु भाद्रपद शुक्ला दशमी को बलिदान दिया थौ । यहां पतिवर्ष विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला भरता दशनोक बीकानेर में करणी माता मंदिर के चारों और विशाल ओरण स्थित हैं देववन ( ओरण ) मंदिरो व धार्मिक स्थलों के निकट स्थित वन क्षेत्र को ओरण कहते है । यहां पर लकडी काटना वर्जित होता है ।

डाढ़ देवी वनखण्ड-

कोटा राज्य का सर्वाधिक जैव विविधता वाला ओरण है । कोहडा के अतिप्राचीन विशाल वृक्ष इस वन की प्रमुख विशेषता हैं उदयपुरवन मण्डल ने 1992 में अरावली देव वन संरक्षण नामक अभियान प्रारम्भ किया ।

बीड या दड-

राज्य में घास के मैदान या चारागाहों को स्थानीय भाषा में बीड कहा जाता है ।

पचकूटा-

राजस्थान के लोगों की पंसदीदार सब्जी जिसे पांच सूखे फल व सब्जियों को मिलाकर बनाते है । इसको बास्योडा ध् शीतला सप्तमी ध् अष्टमी पर पकाया जाता है । कूमट , कैर , सांगरी , काचरी , गुंदा के फल ।

मोपेन-

जिम्बाब्वे से लाया गया पौधा ।

इजरायली बबूल-

इजरायल से लाया गया पौधा ।

होहोबा / जोजोबा-

एरिजोना ( अमेरिका ) मूल का का एक तिलहन ।

फलोरा ऑफ द इंडियन डेजर्ट –

प्रो . एम एम भण्डारीद्वारा थार मरूस्थल की वनस्पति पर लिखित महत्वपूर्ण पुस्तक ।

राज्य पुष्प-

रोहिडा / राजस्थान की मरूशोभा , मरूस्थल का सागवान , मारवाड टीक आदि उपनामों से प्रसिद्ध । इसमें पीले एवं केसरिया फूल लगते है ।

साइटिस समझौता-

लुप्त होने के कगार वाली संकटग्रस्त वनस्पतियों व जीवों के संरक्षण हेतु मार्च 1975 में भारत सहित 10 देशों के बीच हुआ समझौता ।

वानिकी संरक्षण संस्थान-

जयपुर जोधपुर अलवर में ।

हाइटेक नर्सरी-

टोंक और राजसमन्द ।

राज्य की पहली आंवला नर्सरी-

अजमेर में स्थापित की जायेगी ।

राजस्थान वानिकी एव जैव विविधता परियोजना फेज -2

 राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता फेज -2 जापान के वितीय सहयोग से राजस्थान के दस मरूस्थलीय जिले ( सीकर , झुंझनू , चुरू , जालौर , बाडमेर , जोधपुर , पाली , नागौर , जैसलमेर , बीकानेर ) पांच गैर मरूस्थलीय ( बांसवाडा . डूंगरपूर , भीलवाडा , सिरोही , जयपुर ) सात वन्य संरक्षित क्षेत्र ( कुभलगढ वन्यजीव अभयारण्य , फुलवाडी की नाल , वन्यजीव अभयारण्य , जयसमन्द वन्यजीवन अभयारण्य , केलादेवी वन्यजीव अभयारण्य , रावली टाडगढ वन्यजीव अभयारण्य . ) में कियान्वित की जा रही है ।

8 वर्षीय यह योजना 2011-12 में पारम्भ की गई इस की कुल लागत 1152.53 करोड है । परियोजना के अंतर्गत कुल 83,500 हैक्टैयरन क्षेत्र में वृक्षारोपण किया गया ।

राष्ट्रीय उद्यान -3 , क्षेत्रफल -620.78 वर्ग किमी ,

वन्य जीव अभयारण्य- 26 , क्षेत्रफल- 10850.15 वर्ग किमी ।

बाद्य परियोजनाएं -3

विरासत संरक्षित क्षेत्र-        

1.            रामसर नम भूमि स्थल

2.            केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान.भरतपुर

3.            सांभर झोल सांभर , जयपुर

मृग वन :- 

चितौडगढ दुग मृगवनचितौडगढ
सज्जनगढ मृगवनउदयपुर
कायलाना झील एवं माचिया सफारी पार्कजोधपुर 
संजय उद्यानशाहपुरा जयपुर 
अशोक विहार मृगवनजयपुर
अमृतादेवी मृगवन खेजडली जोधपुर
जैविक उद्यानसज्जनगढ- उदयपुर
नाहरगढजयपुर
माचियाजोधपुर

      

वनोपज का नाम उपयोग प्राप्ति वाले जिले विशेष विवरण
शहद व मोम आयर्वेदिक औषधि अलवर , भरतपर , सिरोही मधुमक्ख्यिों के छते से प्राप्त
बांस टोकरी , चटाई , कागज  बांसवाडा , आबू पर्वत मध्यम ऊँचाई के बांस
खैर कत्था बनाना ( पान के लिए ) कोटा , बूदी , जयपुर खैर के तने को उबालकर
तंदू पता बीडी का निर्माण
( टिमरू की पत्ती भी कहते है )
उदयपुर , बारां, टोंक,
कोटा, झालावाड
बीडी का निर्माण
जयपुर , टोंक , कोटा में
गांद खेजडी , बबूल आदि वृक्ष से चैहटन बाडमेर महाराष्ट व गुजरात को निर्यात
खस शर्बत , इत्र भरतपुर , टोंक स.माधो . भरतपुर की खस की इत्र प्रसिद्ध
आंवला या झाबुई छाल से चमडा साफ किया जाता है जोधपुर , पाली , सिरोही   —-
महुआ देशी शराब डूंगरपुर , चितोड दक्षिणाचल की आदिवासी संस्कृति में
साल पैंकिग हेतु लकड उदयपुर , चितोड  —–
सागवान फर्नीचर बांसवाडा , उदयपुर इमारती  लकडी
धोकडा लकडी के कृषि औजार उदयपुर , बांसवाडा  ——–
खिरनी की लकडी खिलौने अलवर , अजमेर , उदयपुर  

राजस्थान में वन संसाधन

Similar Posts